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________________ t.tt.t.tetituttettotatuteket.t.tutetatutetstetatutta ३८ जैनग्रन्थरत्नाकरे t.tt.tttt.tt...t +tttttt.ttttt,,, बंधु विरोध करै निशवासर; दंडनकों नरवे छल जोवे ।। * पावक दाहत नीर बहावत, हे दृगओट निशाचर ढोवै ॥ * भृतल रक्षित जक्ष हैरै करकै दुरव्रत्ति कुसंतति खोवै। ये उतपात उठै धनके ढिग; दामधनी कहु क्यों सुख सौवै७४ * नीचस्यापि चिरं चटूनि रचयन्त्यायान्ति नीचैर्नति * शत्रोरप्यगुणात्मनोऽपि विद्धत्युच्चैर्गुणोत्कीर्तनम् ।। निर्वदं न विदन्ति किंचिदकृतज्ञस्यापि संवाक्रमे कष्टं कि न मनस्विनोऽपि मनुजाः कुर्वन्ति वित्तार्थिनः॥ घनाक्षरी। नीच धनवंत ताहि निख असीस देय; वह न विलोकै यह चरन गहत है । वह अकृतज्ञ नर यह अज्ञताको घरः । ___ वह मद लीन यह दीनता कहत है । वह चित्त कोप ठाने यह वाको प्रभु मानः वाक कुवचन सब यह पै सहत है । ऐसी गति धार न विचार कछु गुण दोष; अरथाभिलाषी जीव अरथ चहत है ।। ७५ ॥ लक्ष्मीः सर्पति नीचमर्णवपयः सङ्गादिवाम्भोजिनी संसर्गादिव कण्टकाकुलपदा न वापि धत्ते पदम् ।। t.tit.tt.t..r-titatitut.t.t.tt..t.t.tt.tt.tt.tt. t ..........FAnkuttankink.keti - - १. राजा. HTTTTTTTTM
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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