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________________ जैन ग्रन्थरत्नाकरे दारिद्र्यं न तमीक्षते न भजते दौर्भाग्यमालम्बते नाकीर्तिर्न पराभवोऽभिलपते न व्याधिरास्कन्दति । दैन्यं नाद्रियते दुनोति न दरः क्लिश्नन्ति नैवापदः पात्रे यो वितरत्यनर्थदलनं दानं निदानं श्रियाम् ॥७८॥ पदपद । सो दरिद्र दल महि; ताहि दुर्भाग न गंज हि । सो न लहै अपमानः सु तो विपदा भयभंजहि ॥ तिहि न कोई दुख देहि . तासु तन व्याधि न बढइ 1 ताहि कुवश परहरहि, सुमुख दीनता न कट्टई ॥ सो लहहि उच्चपदजगत महँ, अब अनरथ नामहि सरख । कहै कुँवरपाल सो धन्य नर, जो सुर्खेत बोंब दरव ॥७८॥ लक्ष्मीः कामयते मतिर्मृगयते कीर्तिस्तमालोकते ४० प्रीतिचुम्वति सेवते सुभगता नीरोगतालिङ्गति । श्रेयः संहतिरभ्युपैति वृणुते स्वर्गोपभोगस्थितिमुक्तिर्वाञ्छति यः प्रयच्छति पुमान्पुण्यार्थमर्थं निजम् ॥ घनाक्षरी । ताहिको सुबुद्धि बरे रमा नाकी चाह करे, चंदन सरूप हो सुयश ताहि चर । सहज सुहाग पार्श्वे सुरंग समीप आवै, बार बार मुकति रमनि ताहि अरचे || ताहिके शरीरकों अलिंगति अरोगताई, मंगल करे मिलाई प्रीत करें परचे
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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