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________________ असमर्थ है या कभी किसी कारणसे ऐसा नहीं कर सकते हैं, वे मंदिरजीके उपकरण आदिसे अपना काम निकाल सकते हैं, इसीलिये मंदिरोंमें उनका प्रबंध रहता है। बहुतस स्थानोंपर श्रावकोंके घर विद्यमान होते हुए भी, कमसे कम दो चार पूजाओंके यथासंभव नित्य किये जानेके लिये, मंदिरों में पूजन सामग्रीके रक्खे जानेकी जो प्रथा जारी है, उसको भी आज कलके जैनियोंके प्रमाद, शक्तिन्यूनता और उत्साहाभाव आदिके कारण एक प्रकारका जातीय प्रबंध कह सकते हैं, अन्यथा, शास्त्रोंमे इस प्रकारके पूजन सम्बन्धमें, आमतौरपर अपने घरसे सामग्री लेजाकर पूजन करनेका ही विधान पाया जाता है-जैसा कि ब्रह्मसूरिकृत् त्रिवर्णाचारके निम्नलिखित वाक्यसे भी प्रगट है: "ततश्चैत्यालयं गच्छेत्सर्वभव्यप्रपूजितम् । जिनादिपूजायोग्यानि द्रव्याण्यादाय भक्तितः ॥" -अ. ४-१९०। अर्थात्-संध्यावन्दनादिके पश्चात् गृहस्थ, भक्तिपूर्वक जिनेन्द्रादिके पूजन योग्य द्रव्योंको लेकर, समस्त भव्यजीवों द्वारा पूजित जो जिनमंदिर तहां जावे । भावार्थ-गृहस्थोंको जिनमंदिरमें पूजनके लिये पूजनोचित द्रव्य लेकर जाना चाहिये । परन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि विना द्रव्यके मंदिरजीमें जाना ही निषिद्ध है, जाना निषिद्ध नहीं है । क्योंकि यदि किसी अवस्थामें द्रव्य उपलब्ध नहीं है तो केवल भावपूजन भी हो सकता है। तथापि गृहस्थोंके लिये द्रव्यसे पूजन करनेकी अधिक मुख्यता है। इसीलिये नित्यपूजनका ऐसा मुख्य स्वरूप वर्णन किया है। अपर नित्यपूजनका जो प्रधान स्वरूप वर्णन किया गया है, उसके अतिरिक्त, "जिनबिम्ब और जिनालय बनवाना, जिनमन्दिरके खर्चके लिये दानपत्र द्वारा ग्राम गृहादिकका मंदिरजीके नाम करदेना तथा दान देते समय मुनीश्वरोंका पूजन करना, यह सब भी नित्यपूजनमें ही दाखिल (परिगृहीत) है।" जैसा कि आदिपुराण पर्व ३८ के निम्नलिखित वाक्योंसे प्रगट है:
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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