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________________ १७ " तत्र नित्यमहो नाम शश्वजिनगृहं प्रति । स्वगृहानीयमानाच गन्धपुष्पाक्षतादिका ॥" -- अ. ३८, ० २७ । अर्थात- प्रतिदिन अपने घरसे जिनमंदिरको गंध, पुष्प, अक्षतादिक पूजनकी सामग्री ले जाकर जो जिनेन्द्रदेव की पूजा करना है उसको नित्य - पूजन कहते हैं । धर्मसंग्रहश्रावकाचार में भी नित्यपूजनका यही स्वरूप वर्णित है । यथा: “जलाद्यै धौतपूताङ्गैर्गृहानीतैर्जिनालयम् । यदन्ते जिना युक्त्या नित्यपूजाऽभ्यधायि सा ॥” ९-२७। प्रतिदिन क्या स्त्री, क्या पुरुष, क्या बालक, क्या बालिका - सभी गृहस्थ जन अपने अपने घरोंसे जो बादाम, छुहारा, लौग, इलायची या अक्षत (चावल) आदिक लेकर जिनमंदिरको जाते हैं और वहां उस द्रव्यको, जिनेन्द्रदेवादिकी स्तुतिपूर्वक नामादि उच्चारण करके, जिनप्रतिमाके सन्मुख चढ़ाते हैं, वह सब नित्यपूजन कहलाता है । नित्यपूजनके लिये यह कोई नियम नहीं है कि वह अष्टद्रव्यसे ही किया जावे या कोई खास द्रव्यसे या किसी खास संख्यातक पूजाएँ की जावे, बल्कि यह सब अपनी श्रद्धा, शक्ति और रुचिपर निर्भर है- कोई एक द्रव्यसे पूजन करता है, कोई दोसे और कोई आठोंसे; कोई थोड़ा पूजन करता और थोड़ा समय लगाता है, कोई अधिक पूजन करता और अधिक समय लगाता है; एक समय जो एक द्रव्यसे थोड़ा पूजन करता है दूसरे समय वही अष्टद्रव्यसे पूजन करने लगता है और बहुतसा समय लगाकर अधिक पूजन करता है - इसी प्रकार यह भी कोई नियम नहीं है कि मंदिरजीके उपकरणोंमें और मंदिरजीमें रक्खे हुए वस्त्रोंको पहिनकर ही नित्यपूजन किया जावे | हम अपने घरसे शुद्ध वस्त्र पहनकर और शुद्ध वर्तनोंमें सामग्री बनाकर मंदिरजीमें ला सकतेहैं और खुशीके साथ पूजन कर सकते हैं। जो लोग ऐसा करनेके लिये जि० पू० २ पूजन करता है वा
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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