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________________ (झ) उत्तम शिक्षा । (गुप्त दान महादान ) हमारे एक विश्वविद्यालयमें एक युवा विद्याथीं एक आचार्यके साथ बाहर जा रहा था। यह आचार्य विद्यार्थियोंका मित्र कहलाता था। क्योंकि जो इससे किसी प्रकारकी शिक्षा ग्रहण करने आते थे, उनसे यह बड़ी दयालुतासे बर्तता था और उनका हित चाहता था। जब वे दोनों चले जा रहे थे, उन्होंने मार्गमें एक पुरानी जूतियोंका जोड़ा पड़ा देखा और विचार किया कि यह जोड़ा किसी दीन दरिद्री वा धनहीन मनुष्यका है जो पासके खेतमें काम कर रहा है और जो अपना दिनका काम लगभग पूरा कर चुका है। विद्यार्थीने आचार्यसे कहा "आओ हम इस मनुष्यसे दाव खेलें, अर्थात् हम इसकी जूतियां छुपा देते हैं और आप इन झाड़ियोंकी ओझलमें हो जाते हैं। फिर वहां खड़े होकर यह देखेंगे कि जब वह मनुष्य यहां आकर अपनी जूतियां न देखेगा, तब कैसा घबरायगा" आचार्यने उत्तरमें यह कहा, "हे मित्र ! हमें दीनों और निर्धनोंसे कभी ऐसी हंसी नहीं करनी चाहिये जिसमें उनको कुछ हानि पहुंचे । देखो! तुम तो धनवान् हो और इस निर्धनके कारण तुम इस प्रकार काम करनेसे और भी अधिक हर्ष लाभ कर सकते हो । अर्थात् प्रत्येक जूतीमें एक २ अठमाशी या अशरफी डाल दो और फिर देखो कि अशरफी देखकर इस निर्धनकी क्या दशा होती है"। विद्याथीने ऐसा ही किया और फिर वे दोनों पास ही झाड़ीके पीछे छुप कर खड़े हो गए।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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