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________________ ( ५१ ) उनका जी चाहे चुपके से रख देते हैं और इस द्रव्यसे दरिद्रोंका पालन पोषण होता है और उन्हें भी यह प्रतीत नहीं होता कि कौन उनका पालन पोषण करता है । हम आगे जाकर इस विषय में एक कहानी लिखेंगे । इसीको गुप्तदान महादान भी कहते हैं । आठवीं - सबसे पिछली और अत्युत्तम सीढ़ी यह है कि दानका ऐसा प्रबन्ध करना जिससे दरिद्रता आने ही न पाए, अर्थात् जिस भाईपर विपत् पड़ी है उसकी इस प्रकार सहायता करना कि उसको कुछ व्यापार सिखा दें या उसे किसी काममें डाल दें, जिससे वह निष्कपटतासे परिश्रम करके आप अपनी जीविका और उदरपूरणा कर सके और उसे दान लेनेके लिये दूसरोंके आगे हाथ पसारना न पड़े । वस्तुतः सर्वोत्तम दान इसीको कहते हैं । इसीलिये हमारा सबका यह कृत्य है कि दीन मनुष्यों, याचकों, भिखारियों और विधवा और दुःखी स्त्रियोंको काम सिखावें और अन्धों और अपाहजोंके लिये भी यथायोग्य काम सिखानेका प्रबन्ध करें और हट्टे कट्टे आज कलके साधुओंको भी पढ़ने लिखने धर्मोपदेश देनेमें प्रवृत्त करें, जिससे सबका उपकार हो और सारे संसारका उद्धार हो । 1 हे परम पिता परमेश्वर, परमात्मा ! ऐसी कृपा कर कि हम सब उत्तम २ कार्य्य करनेमें प्रवृत्त हों, अपने आचरण और शील सुधारें, एक दूसरेकी सहायता करें, और तेरे परम भक्त होकर तेरे गुणानुवाद सदा गाते रहें ।
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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