SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । वह निर्धन शीघ्र ही अपना काम पूरा करके खेतके उस मार्गमें आया जहां यह अपना कोट और जूतियां उतार कर रख गया था । कोट पहनते समय पहले उसने एक जूतीमें पैर रक्खा, परन्तु किसी कठिन वस्तुके लगनेसे वह उसे टटोलनेके लिये झुका और उसे एक अशरफी मिली । फिर तो उसके मुखपर आश्चर्य और विस्मयके चिह्न प्रकट हुए। उसने उस मोहरको गाढ़ दृष्टिसे देखा, उलट पुलट किया और बार २ ध्यान देकर देखा । फिर उसने अपने चारों ओर देखा, पर कोई मनुष्य दिखाई न दिया। अब उसने अशरफी अपनी पाकटमें डाल ली और फिर दूसरी जूती पहनने लगा, परन्तु दूसरी अशरफी देख कर तो उसे और भी अधिक आश्चर्य हुआ। ___ अब उसका जी हर्ष और कृतज्ञतासे भर आया । घुटनोंके बल होकर उसने ऊपर आकाशकी ओर देखा और बड़े उत्साहसे ईश्वरका धन्यवाद किया । इस प्रार्थनामें उसने अपनी रोगी और दीन स्त्रीका वर्णन किया और यह भी कहा कि मेरे बालक भूखे हैं, वे सब इस यथासमयके दानद्वारा, जो किसी अनजाने मनुष्यने कृपा करके दिया है, मरनेसे बच जाएंगे। परमात्मा उसका भला करे। विद्यार्थीपर इस बातका बड़ा प्रभाव पड़ा और उसकी आखोंमें आंसू भर आए । तब आचार्यने कहा-यह बताओ कि तुम अब अधिक प्रसन्न हुए या अपना दाव खेलकर अधिक प्रसन्न होते ? विद्यार्थीने कहा-मैं आपकी शिक्षाको कदापि नहीं भूलंगा । अब यह निम्नलिखित वाक्य भली भांति मेरी समझमें आ गया,
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy