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________________ ESCO GORATORSDOMGDISTRICDSPIONEDRISTORAGONR.GORIAGES RACK agedicines. EGAL AF जनशतक । वर मौनमंत्रसों होय वश, संगत कीये हान है । बहु मिलत बान यातें सही, दुर्जन सांप समान है। विधातासों तक। ___ मनहर कवित्त । सजन जो रचे तो सुधारस सों कौन काज, दुष्ट जीव किये कालकूटसों कहा रही । दाता निरमापे फिर थापे क्यों कलप वृच्छ, याचक विचारे लघु तृण कहते हैं सही । इष्टक संयोगते न सीरो घनसार कछु, जगतको ख्याल इंद्रजाल सम है वही । ऐसी दोय दोय बात दीखें विधि एकहीसी, काहेको वनाई मेरे धोखो मन है यही ॥ ८॥ चौवीमतीर्थकरोंके चिह्न । छप्पय । गंऊपुत्र गजराज, बाजि बानर मनमोहै । कोक कमल सांथिया. मोम सफरीपति सोहे ॥ सुरतरु गैंडा महिष, कोल पुनि सेही जानो। वज्र हिरन अज मीन, कलश कच्छप उरआनो ॥ शंतपत्र शंख अहिराज हरि, ऋषभदेवजिन आदि ले। श्रीवद्धमानलों जानिये, चिहन चारु चौवीस ये॥८१॥ १ शीतल । २ बैल । ३ चन्द्रमा । ४ मकर । ५ कल्पवृक्ष । ६ शकर । ७ रक्तकमर । ८ सर्प। PROOGOLGOGOAGEASONICODADAGOGOAGOMATOG-POOLSTOMGDISEASONSTAGREACTEACOUSTORSDASDLSOGOGONDODES PRAVEERUDDIN
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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