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कविवर भूधरदासविरचित
महामूढ़ वर्णन। ___ जीवन कितेक तामें कहा वीत बाकी रह्यो, ताप अंध कौन कौन करे हेर फेर ही । आपको चतुर जाने औरनको मूह मान, सांझ होन आई है विचारत सवेर ही ॥ चामहीक चखनतें चितवै सकल चाल, उरसों न चौंध कर राख्यो है अंधेर ही। वाह बानतानकै अचानक ही ऐसो जम,दीस है मसान थान हाइनको ढेर ही ७७ __ केती बार स्वान सिंघ सांबर सियाल सांप, बानर बिलाव सूसा सूरी उदरै पस्यो । केती बार चील चमगीदर चकोर चिरा, चक्रवाक चातक चँडूल तन भी धस्यो । केती बार कच्छ मच्छ मेंडक गिंडोला मीन,
शंख सीप कोंडी है जलूका जलमें तिस्यो । कोऊ • कह "जायरे जनावर!" तो बुरो माने,यों न मूढ जाने । . मैं अनेकबार हे मस्सो ॥ ७८ ॥
दुष्टकथन ।
छप्पय. करि गुणअम्रतपान, दोषविष विषम समप्पै । बँकचाल नहिं तजे, जुगल जिह्वा मुख थप्पै ॥ तकै निरन्तर छिद्र, उदै परदीप न रँच्चै । विन कारण दुख करै, वैरविष कबहुं न मुच्चै ॥७९
१ देखे । २ शुकरी । ३ जोक । ४ अच्छालगतार्ह ५ छोडताहै । are revervoveroverete veroverbeveer COVOCVEVOS
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