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________________ PASSP ॐ ॐ ॐ ॐ ७०-७० कविवर भूधरदासविरचित श्री ऋषभदेवके पूर्वभव । कवित्त मनहर | आदि जयवर्मा दूजे महाबलभूप तीजे, सुरगईशान ललितांग देव थयो है । चौथे वज्रजंघ एह पांचवें जुगल देह, सम्यक ले दूजे देवलोक फिर गयो है ॥ सातवें सुबुद्धिराय आठवें अच्युतइन्द्र, नवमें नरेन्द्र वज्रनाभ नाम भयो है । दशैं अहमिन्द्र जान ग्यारवें ऋपभभान, नाभिवंश भूधरके सीस जन्म लयो है || ८२ ॥ श्रीचन्द्रप्रभके पूर्वभव । गीता. । श्रीवर्म भूपति पाल हमी, स्वर्ग पहले सुर भयो । पुनि अजितमेन छखंडनायक. इन्द्र अच्युतमें थयो । वर परम नाभिनरेश निर्जर, वैजयंति विमानमें । चंद्राभ स्वामी सातवें भव, भये पुरुषपुरानमें ॥८३॥ श्री शान्तिनाथके पूर्वभव । कवित्त ( ३१ मात्रा ) सिरीसेन आरज पुनि स्वर्ग, अमिततेज खेचर पद पाय । सुर रविचूल स्वर्ग आनतमें, अपराजित वलभद्र कहाय ॥ अच्युतेंद्र वज्रायुध चक्री, फिर १ पृथ्वी । elevato rebelow २९ oroc 58580578509003
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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