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________________ RGOGOMGOATOARIGOLGOGOAGDAGAGRAAGOAMRAGYAGADAGDIGGOLGIPRESS जैनशतक । १२ wimixRADIORADABAD SOPARAMPACOODAIDE تحریر:شاره کردن تقدیر जियरा जी । गेह चुनाय करूं गहना कछु, व्याह 3. सुतासुत बाँटिये भांजी ॥ चिन्तत यों दिन जाहिं चले जम, आन अचानक देत दगाजी । खेलत खेल खिलारि गये, “रह जाइ झपी शतरंजकी बाजी"॥ तेज तुरंग सुरंग भले रथ, मत्त मतंग उतंग खरे ही । दास खवाम अवाम अटा धन, जोरकरोरन १ कोश भरे ही ॥ ऐसे भये तो कहा भयो हे नर ! छोर चले जब अंत छरे ही । धाम खरे रहे काम परे रहे, १ दाम गरे रहे ठाम धेरे ही ॥ ३३ ॥ अभिमाननिषेध । कवित्त मनहर । ___ कंचनभंडार भरे मोतिनके पुंज परे, घने लोग द्वार खरे मारग निहारते । जान चदि डोलत हैं झीने : सुर बोलत हैं, काहुकी हू ओर नेक नीक न चितारते ॥ कौलों धन खांग कोऊ कहें या न लांग तेई, फिर पाँय , नांगे कांगे परपग झारत । एते पै अयाने गरवाने रहें: विभौ पाय. धिक है समझ ऐसी धर्म ना सँभारते ३४ देखो भरजोबनमें पुत्रको वियोग आयो, तसंहि १ विवाह वगैरह उत्सवोंमे जो मिष्टान्न वाटा जाता है, उसे भाजी १ कहते है । २ जमी हुई। ३ 'गडे रहे' तथा-'डरे रहे' ऐमा भी 7 पाट है। cmoanasresentarcoicom-asso RABEATH A ... ی قینی CADADAPADMODERNOOR
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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