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________________ 46990/90/999999999 कविवर भूधरदासविरचित १३ निहारी निजनारी कालमगमें । जे जे पुन्यवान जीव दीखते थे यानही पै, रंक भये फिरें तेऊ पनह्रीं न पगमं ॥ एते पै अभाग धनजीतवसों धेरै राग. होय न विराग जाने रंहगो अलगमें । आंखिन त्रिलोक अंध की अँधेरी करें, ऐसे राजरोगको इलाज कहा जगमें ॥ ३५ ॥ दोहा | जैनवचन अंजनवटी, आंजें सुगुरु प्रवीन । रागतिमिर तोड़ न मिट. बड़ो रोग लख लीन ॥ ३६ ॥ मनहर । जोई दिन कट सोई आवमें अवश्य घंटे, बूंद बूंद air जैसे अंजुलीको जल है । देह नितझीन होत नैन तेज हीन होत, जोवन मलीन होत छीन होत बल है । आंबे जरा नेरी तकै अंतकअहेरी आय, परभा नजीक जाय नरभी निफल है । मिलके मिलापी जन पूँछत कुशल मेरी, "ऐसी दशामाहीं मित्र ! काहेकी कुशल है ' ॥ ३७ ॥ १ शशक ( खर्गेश ) सब जगह अधेरा हो गया, रूपी व्याधा । अपनी आखे बंद करके जानता है, अब मुझे कोई देखता ही नहीं है । २ जमराज 191991991993 55358504
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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