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________________ ADEM PROO GOLOGERONaysacram WE NAMASTOTTARAMAATAMATAGAARA कविवर भूधरदामविरचित- ११ क्यों नरके निजजीको । आये हैं सतं अजों शठ चेत, है "गई सुगई अब राख रहीको” ॥ २९ ॥ कवित्त मनहर। ___ सार नर देह सब कारजको जोग येह, यह तो विख्यात बात वेदनमें बैच है । तामें तरुनाई धर्म। संवनको सम भाई, सेये तब विष जैसे माखी मधुरचै । है ॥ मोहमदभोय धनरामाहित रोज रोये, याही दिन खोय खाय कोदों जिम मचे है । अरे मुन बोरे ! अब आय मीस धीरे अजी, सावधान हो रे नर नरक: सों बचे है ॥ ३० ॥ मत्तगयन्द ( संवया )। वाय लगी कि बलाय लगी, मदमत्त भयो नर: * भृलत त्यों ही । वृद्ध भये न भजे भगवान, विर्ष विष रवात अघात न क्यों ही ॥ सीस भयो वगुलासम सेत, : रद्यो उरअंतर श्याम अजों ही । मानुपभी मुकता* फलहार, गवार ताहित तोरत यों ही ॥ ३१ ॥ संमारीजीवका चितवन । चाहत हैं धन होय किसी विध, तो सब काज सरै ARMirmicMARAC ii. @Goriasiriyasa waisinoxidation n ASOADPAROMPREMi नरकमे। • सफेदवाल । ३ मोहम्पी मदमे मग्न हुए। ४ सफेद | वाल ।" प्रेतबाधा । ६ सूनके धागेके लिये। Gracreo veroorde veX VXFOUVOS VOLVO VOS VOLVO VOC @ Core
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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