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________________ आवास-गृहों के लक्षण आवास-गृहों के सामान्य लक्षण __वही घर शोभावर्धक और ऋद्धिदायक होता है, जिसके सभी अंग पुरुष के अंगों की भाँति सपूर्ण भी हो, अनुपात मे हो और शुद्ध भी हों। घर पीछे चौड़ा और आगे कम चौड़ा, तथा पीछे ऊँचा और आगे कम ऊँचा होना चाहिए। इससे घर अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित रहेगा और व्यक्तिगत गतिविधियों (प्राइवेसीज़) कम-से-कम उजागर हो सकेगी; सामने मार्गसबंधी औपचारिकताओं मे कम स्थान घिरेगा, जिससे रहने को अधिक स्थान मिल सकेगा। घर के आकार की तुलना गोमुख, बैलगाडी और सूप (अनाज फटकने का सूपा) से की गई है; क्योकि ये तीनो भी पीछे चौड़े और आगे कम चौड़े होते हैं। घर के संदर्भ मे घर-गृहस्थी की इन चीजों का उदाहरण मनोरंजक तो है ही, मनोवैज्ञानिक भी है। गाय एक सरल-सहज प्राणी है, जैसा कि एक सद्गृहस्थ या सदगृहिणी को होना चाहिए। वैसे भी गाय का महत्त्व प्राचीनकाल से रहा है, सिधु घाटी की सभ्यता में भी गो-पालन होता था। वास्तु-विद्या मे गाय का यह उदाहरण इतिहास और समाजशास्त्र की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। दुकान, इनके विपरीत, आगे चौडी और ऊँची हो, मध्य मे तथा पीछे समान हो। घर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में हो।—कि पूर्व दिशा को मगलमय माना गया है अतः मुख्यद्वार पूर्वमुख रखने का विधान वास्तुशास्त्र मे सबसे शुभ माना गया है। फिर देखा जाए कि घर की या उसकी भूमि की ऊँचाईनिचाई बराबर है या नहीं। पूर्व में ऊंचाई होने पर धन-हानि, दक्षिण में ऊँचाई होने पर समृद्धि, पश्चिम में ऊँचाई होने पर धन-धान्य आदि की वृद्धि और उत्तर में ऊँचाई होने पर बरबादी होने की संभावना रहती है। घर या देवालय का जीर्णेद्धार करते समय ध्यान रहे कि मुख्यद्वार जरा भी इधर-उधर या परिवर्तित न किया जाए: वह जिस दिशा मे जिस स्थान पर, जिस नाप का हो, उसी दिशा में, उसी स्थान पर और उसी नाप का जन वास्तु-विधा
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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