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________________ - 10 15 30 मकान या राजमहल की भूमि की प्रत्येक दिशा में सात भाग मानकर प्रत्येक भाग एक निश्चित राशि को नामित किया जाए। उस राशि में वत्स जितने दिन रहता है, उतनी संख्या उस भाग में मानी जाए। जिस दिशा में वत्स का मुख हो उस दिशा मे नींव की खुदाई, गृह-प्रवेश आदि 5 मिथुन 15 कर्क 16 सिंह | सिंह शुभ कार्यों का निषेध है। वत्स मिथुन मिथुन 36 सिंह | 6 | सिंह का मुख प्रत्येक दिशा मे तीन | वायव्य उत्तर ऐशान माह तक रहता है। इतने लबे समय तक शुभ कार्य रोके रखना सभव न हो, तो यहाँ बने वत्स कन्या चक्र के अनुसार कार्यारम्भ किया जा सकता है। पश्चिम सूर्य जिस दिशा में स्थित वृश्चिक हो, उसके उदय में उतने दिन 101 उस भाग मे कार्यारम्भ नहीं किया वृश्यिक जाए। उदाहरण के लिए जब | नत्य दक्षिण आग्नेय पूर्व दिशा मे सूर्य कन्या राशि मे कुम्भ 101 कुम्भ| धनुस्। 101 धनुस् । हो, तो पाँच दिन तक प्रथम भाग | 5 | कुम्भ | 15 मकर 15 धनुस 5 ] मे कार्यारम्भ न किया जाए. दूसरे वत्स-चक्र भागो मे अच्छा मूहूर्त देखकर कार्यारम्भ किया जा सकता है। इसी प्रकार अन्य भागो में भी किया जाए। 00 मेष तुला 15 15 मीन मीन 5 (जैन वास्तु-विद्या
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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