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________________ 'वास्तु' और 'स्थापत्य' शब्दों की एकरूपता 'वास्तु' का ही अर्थ देनेवाला संस्कृत शब्द है 'स्थापत्य' । वह 'स्था' क्रिया से बना है, जिसका अर्थ है : रहना, ठहरना, टिकना आदि। इसके लिए अंग्रेज़ी में 'आर्किटेक्चर' और उर्दू में 'इमारत' शब्द हैं। चार उपवेदों में से एक का नाम है 'स्थापत्य वेद' 'हिन्दी शब्दसागर के अनुसार इसे विश्वकर्मा ने 'अथर्ववेद से निकाला था। इस संदर्भ में विशेषरूप से उल्लेखनीय है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ के एक पुत्र का नाम विश्वकर्मा'" भी था और उनके ज्येष्ठपुत्र भरत का अन्य नाम 'अथर्वा" भी था । · 'स्थापत्य' शब्द का पहला रूप है 'स्थपति', जिसका अर्थ है 'मिस्त्री' या 'राजगीर' । उल्लेखनीय है कि संस्कृत मे स्थपति' शब्द का एक अर्थ है 'कुबेर'; और यह भी उल्लेखनीय है कि तीर्थकर के समवसरण का निर्माण इंद्र के आदेश पर कुबेर ही करता है। 'वास्तु' और 'शिल्प' शब्दों की तुलना संस्कृत मे ही एक और शब्द है, 'शिल्प'। यह उसी क्रिया से बना है, जिससे 'शिला' बना है। 'शिला' का अर्थ है 'पत्थर', इसीलिए 'शिल्प' का अर्थ होना चाहिए पत्थर का काम' । 'शिल्प' शब्द का कुछ अर्थ परिवर्तन हुआ, जिससे वह 'वास्तु' का अर्थ कम और 'कला' का अर्थ अधिक देने लगा। 'शिल्प' शब्द का अर्थ-विस्तार भी हुआ, जिससे उसमें अब सभी प्रकार की दस्तकारियाँ, ललित कलाएँ और यांत्रिक कलाएँ आती हैं। प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ ने जनता को आजीविका के छह साधन बताए थे 7 : असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, विद्या और शिल्प । इनमे से विद्या के अनेकरूपों में वास्तु-विद्या और शिल्प कला भी रही होनी चाहिए। वास्तु-विद्या और 'कला' की समानता द्वादशाग जिनवाणी के बारहवे अंग 'दृष्टिवाद' के अंतर्गत चौदह पूर्वो' मे 'क्रिया-विशाल' नामक तेरहवे पूर्व में विविध कलाओ और विधाओ का समावेश है, जिनमें 'वास्तु-विद्या' भी एक है। 'समवायाग-सूत्र' के अनुसार चौंसठ कलाओं में छप्पनवीं से इकसठवीं तक की छह कलाएँ वास्तव में वास्तुविद्या की ही विभिन्न शाखाएँ हैं। उनके नाम हैं: स्कधावार-मान (सैन्य शिविरो की लंबाई-चौड़ाई), नगर-मान, वास्तु-मान, स्कंधावार निवेश, जैन वास्तु-विद्या
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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