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________________ और सुविधा-संपन्नता के नए कीर्तिमान स्थापित हो चुके हैं। ज्योतिष, मंत्रतंत्र आदि पर आधारित वास्तु-विद्या के बदले रेखागणित, मौसम-विज्ञान, समाज-विज्ञान आदि को मान्यता मिल रही है। ___ जनसंख्या के दबाव ने निर्माताओं को कम-से-कम भूमि पर अधिक से अधिक आवास-गृह जुटाने को विवश कर दिया है; इसलिए गगनचुंबी भवन खड़े किए जा रहे हैं, विशाल-विस्तृत कॉलोनियों और नगर बसाए जा रहे हैं। उद्योग-नगरियो का विकास सर्वत्र हो रहा है; आधुनिकतम कारखाने लगाए जा रहे हैं। सार्वजनिक सुविधाओं के साधन जुटाए जा रहे हैं। धार्मिक और सास्कृतिक स्थानों के निर्माण की भी यही स्थिति है। पर्यावरण को सन्तुलित बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण और उद्यानीकरण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। आकर्षक पर्यटन-स्थल अस्तित्व में आ रहे हैं। पशु-पक्षियो के लिए अभयारण्यों का विकास हो रहा है। परन्तु परम संतोष का विषय है कि भवन-निर्माण कला के इस प्रबल परिवर्तन के युग में भी प्राचीन वास्तु-विद्या का स्मरण किया जाता है। धर्म और वास्तु-विद्या के भूले-बिसरे संबध पुनः स्थापित किए जाने लगे हैं। अनेक निर्माता, स्थपति (आर्किटेक्ट) और वास्तुविद प्राचीन वास्तुशास्त्रीय सिद्धातो का सहारा ले रहे हैं। अनेकानेक गृहस्थ और उद्योगपति अपने भवनो और मकानो में वास्तु-विद्या के अनुरूप सुधार कराते देखे जा सकते हैं। इस मान्यता पर लोगो का विश्वास आज भी है कि दिशा बदलने से दशा बदल सकती है। 'वास्तु' शब्द का अर्थ 'वास्तु' शब्द सस्कृत की 'वस्' क्रिया से बना है, जिसका अर्थ है 'रहना' । मनुष्यो, देवो और पशु-पक्षियों के उपयोग के लिए मिट्टी, लकडी, पत्थर आदि से बनाया गया स्थान वास्तु' है। सस्कृत का वसति' और कन्नड का 'बसदि' शब्द भी वास्तु के अर्थ मे ही हैं। हिन्दी का बस्ती' शब्द भी वास्तु से सबद्ध है, परन्तु वह ग्राम, नगर आदि के अर्थ मे प्रचलित हो गया है। सोना-चाँदी, धन-धान्य, दासी-दास, कुप्य-भाण्ड से भी पहले क्षेत्र और वास्तु को स्थान देकर 'तत्त्वार्थ-सूत्र' में आचार्य उमास्वामी ने वास्तु-विद्या को दो हजार वर्ष पहले जो महत्त्व दिया था, वह आज भी विद्यमान है। (जैन वास्तु-विधा -
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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