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________________ ( २४० ) प्र० ३७८-गुणस्थान कितने है ? उत्तर-१४ भेद है-मिथात्व, सासादन, मिश्र, अविरत सम्यक्त्व, देश विरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म साम्पराय उपशान्त मोह, क्षीण मोह, सयोगी केवली और अयागी केवली। प्र० ३७६-(१) मिथ्यात्व गुणरथान का स्वरूप क्या है ? उत्तर-(१) सच्चे देव-शास्त्र-गुरू का विपरीत श्रद्धान, (२) जीवादि तत्त्वो मे विपरीत मान्यता, (३) स्व-पर की एकत्व श्रद्धा, (४) अतत्व श्रद्धा । प्र० ३८०-(२) सासादन गुणस्थान का स्वरूप क्या है ? उत्तर-सम्यक्त्व को छोडकर मिथ्यात्व की ओर जाना। प्र० ३८१-(३) मिश्र गुणस्थान का स्वरुप क्या है ? उत्तर-सम्यक्त्व और मिथ्यात्व के परिणामो का एक ही साथ होना। प्र० ३८२-(४) अविरत गुणस्थान का स्वरुप क्या है ? उत्तर-सम्यक्त्व तो है ही और साथ मे स्वरुपाचरण चारित्र भी है। किन्तु अशक्तिवश किसी प्रकार के निश्चयव्रत और चारित्र को धारण न कर सके। प्र० ३८३-(५) देश संयत गुणस्थान का स्वरूप क्या है ? उत्तर-सम्यक्त्व सहित एकदेश निश्चय चारित्र का पालन करना। प्र० ३८४-(६) प्रभत्त संयत गुणस्थान का स्वरूप क्या है ? उत्तर-सम्यक् चारित्र की भूमिका मे अहिसादि शुभोपयोग रुप महाव्रतो का पालन करता है, यह प्रमाद है। (याद रहे सर्वथा नग्न दिगम्बर दशा पूर्वक ही मुनिपद होता है)
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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