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________________ ( २३६ ) रुप पडा है । (३) उसका आश्रय लेकर पर्याय मे सिद्ध दशा की प्राप्ति होवे-यह भव्य अभव्य मर्गणा को जानने का मर्म है। प्र० ३७४-१४ मार्गणाओ मे “सम्यक्त्व मार्गणा" बताने के पीछे क्या मर्म है ? उत्तर-(१) औपशमिक, क्षायोपगमिक और क्षायिक सम्यक्त्व के भेद से सम्यक्त्व मार्गणा-मिथ्या दर्शन, सासादन और मिश्र इन तीन विपरीत भेदो सहित छह प्रकार की सम्यक्त्व मार्गणा है। (२) श्रद्धा गुण सहित अभेद आत्मा त्रिकाल पडा है। (३) उसका आश्रय लेकर मिथ्यादर्शनादि अभाव करके प्रथम औपशमिक की प्राप्ति कर, क्षायो दशमिक की प्राप्ति कर, क्षायिक सम्यक्त्व प्रगट होवे-यह सम्यक्त्व मार्गणा को जनाने का मर्म है। प्र० ३७५-१४ मार्गणाओ मे "सज्ञित्व मार्गणा” बताने के पीछे क्या मर्म है ? उत्तर-(१) सजी और असज्ञी के भेद से सज्ञित्व मार्गणा दो प्रकार की है । (२)सज्ञी और असज्ञी से रहित निज परमात्मा स्वरुप एक रुप पडा है। (३) उसका आश्रय लेकर पूर्ण धर्म की प्राप्ति होवे-यह सज्ञित्व मार्गणा को जानने का मर्म है। ___० ३७६-१४ मार्गणाओ में "आहार मार्गणा” बताने के पीछे क्या मर्म है? उत्तर-(१) आहारक और अनाहारक जीवो के भेद से आहार मार्गणा भी दो प्रकार की है। (२) त्रिकाल अनाहारकपना त्रिकाल पडा है । (३) उसका आश्रय लेकर मोक्ष की प्राप्ति होवे-यह आहार मार्गणा को जानने का मर्म है। प्र० ३७७-गुणस्थान किसे कहते है ? उत्तर-मोह और योग के सद्भाव या अभाव से जीव के श्रद्धाचारित्र-योग आदि गुणो की तारतम्यतारुप अवस्था विशेप को गुणस्थान कहते है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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