SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २१४ ) की कर्तृत्व और भोक्तृत्व बुद्धि को छोडकर अपने सहज निर्विकार चिदानन्दस्वरुप शुद्ध पर्याय का कर्ता-भोक्ता होने का प्रयत्न करे। स्वदेह परिणामत्व अधिकार अणु गुरू देह पमाणो उव सहारप्प सप्पदो चेदा। अस मुहदो व्यवहारा णिच्चयणयदो असख देसो वा ॥१०॥ अर्थ--(व्यवहारा) व्यवहारनय से (चेदा) जीव (उप सहारप्पसप्प दो) सकोच और विस्तार के कारण (असमुह दो) समुद्घात अवस्था को छोडकर (अणु गुरु देह पमाणो) छोटे-बडे शरीर के प्रमाण मे रहता है। (वा) और (णिच्चयणय दो) निश्चयनय से (असख्य देसो) वह लोकाकाश जितने असख्य प्रदेश वाला है। प्र० २४६-प्रत्येक जीव का स्वक्षेत्र क्या है ? उ०-प्रत्येक जीव का स्वक्षेत्र लोकाकाश जितना असख्यात प्रदेश वाला है। प्रदेशो की सख्या सदैव उतनी की उतनी ही रहती है, क्योकि स्वचतुष्टय ही एक अखड द्रब्य है। प्र. २४७-क्या छह द्रव्यो में से किसी द्रव्य के क्षेत्र मे खण्ड-टुकडा हो सकते है ? उ०-बिल्कुल नही हो सकते है, क्योकि सभी मूल द्रव्य अखड है, उसी प्रकार प्रत्येक जीव भी अखड द्रव्य है, इसलिये उसके खण्ड, छेदन, टुकडा कदापि नही हो सकते है। प्र० २४८-प्रत्येक द्रव्य के स्वक्षेत्र से क्या सिद्ध होता है ? उ०-प्रत्येक द्रव्य का क्षेत्र पृथक-पृथक है, इसलिये जीव के क्षेत्र मे अन्य कोई द्रव्य प्रवेश नही कर सकता है और जीव भी किसी दूसरे के क्षेत्र में नहीं घुस सकता है।। प्र० २४६-पुद्गल स्कंध के तो खण्ड, छेदन, टुकड़ा हो जाता है, तब सभी मूल द्रव्य अखंड है यह बात कहाँ रही? उ०-पुद्गल स्कध मूल द्रव्य नही है मूल द्रव्य तो परमाणु है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy