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________________ ( २१३ ) है-ऐसा कहा जाता है। प्र० २४०-जीव अनुपचरित असदभूत व्यवहारनय से औदारिक आदि शरीर, पाँच इन्द्रियां तथा आठ द्रव्यकर्मो का भोक्ता है-इस वाक्य पर निश्चय-व्यवहार के दस प्रश्नोत्तरो को समझाइये ? उत्तर-प्रश्नोत्तर १६८ से २०७ तक के अनुसार स्वय प्रश्नोत्तर बनाकर उत्तर दो। प्र० २४१-जीव हर्ष-विषाद, सुख-दुख विकारी भावो का भोक्ता किस अपेक्षा से आगम मे कहा है ? उ०-उपचरित सद्भूत व्यवहारनय से कहा जाता है। प्र० २४२--साधक दशा मे जीव अतीन्द्रिय सुख का भोक्ता है-किस अपेक्षा से कहा जाता है ? उ०-~अनुपचरित सद्भून व्यवहारनय से कहा जाता है। प्र० २४३- केवलज्ञानी अपने परिपूर्ण सुख का भोक्ता है-किस अपेक्षा से कहा जाता है ? उ०-~अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय से कहा जाता है। प्र० २४४- भोक्तृत्व अधिकार में हेय-उपादेय-ज्ञेय किस प्रकार - उ०--(१) भोक्तृत्व-अभोक्तृत्व रुप त्रिकाली आत्मा आश्रय करने योग्य परम उपादेय है। (२) साधक दशा मे अतीन्द्रिय सुख का अगत भोक्ता है और यह एक देश प्रगट करने योग्य उपादेय है। (३) केवली परिपूर्ण अतीन्द्रिय सुख का भोक्ता है-यह पूर्ण भोगने की अपेक्षा पूर्ण उपादेय है । (४) साधक को अस्थिरता सम्बन्धी सुख-दुख हेय है। (५) साता-असाता अनुभाग का फल तथा अत्यन्त भिन्न पर पदार्थ, इन्द्रियाँ आदि व्यवहार से ज्ञान का ज्ञेय है। प्र० २४५~-भोक्तृत्व अधिकार का सार क्या है ? उ.--जीव यथार्थ वस्तुस्वरुप को जानकर पर की और विकार
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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