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________________ ( २०६ ) प्र० २१६-जीव घट-पट, रोटी खाने, बोलने आदि का कर्ता कहा जाता है वह किस अपेक्षा से है ? उत्तर-जीव को अत्यन्त भिन्न वस्तुओ का कर्ता उपचरित असद्भूत व्यवहारनय से कहा जाता है, कर्ता है नही। प्र० २२०-जीव उपचरित असदभूत व्यवहारनय से अत्यन्त भिन्न पदार्थो का कर्ता कहा जाता है इस वाक्य पर निश्चय-व्यवहार के दस प्रश्नोत्तरो का स्पष्टीकरण समझाइये? उत्तर-प्रश्नोत्तर १९८ से २०७ तक के अनुसार देखकर प्रश्नोत्तर स्वय बनाओ। प्र० २२१-औदारिक, वैकियिक, आहारक इन तीन शरीरो का, आहारादि छह पर्याप्ति योग्य पुदगल पिण्ड नोकर्मो का तथा ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का कर्ता जीव को किस अपेक्षा से कहा जाता है ? उत्तर-अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से कर्ता कहा जाता है, कर्ता है नही। प्र० २२२-जीव ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का कर्ता है-इस वाक्य पर निश्चय-व्यवहार के दस प्रश्नोत्तरो का स्पष्टीकरण समझाइये? उत्तर-प्रश्नोत्तर १९८ से २०७ तक के अनुसार देखकर प्रश्नोत्तर स्वय बनाओ। प्र० २२३-जीव शुभाशुभ विकारी भावो का कर्ता किस अपेक्षा से कहा जाता है ? उत्तर-उपचरित सद्भूत व्यवहारनय से कहा जाता है। प्र० २२४-शुभाशुभ विकारी भावो का कर्ता उपचरित सद्भुत व्यवहारनय से जीव है-इस वाक्य पर निश्चय-व्यवहार के प्रश्नोत्तरी को समझाइये?
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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