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________________ ( २१०) उत्तर-प्रश्नोत्तर १९८ से २०७ तक के अनुसार देखो और समझो। प्र० २२५-शुद्ध भावो का कर्ता जीव को किस अपेक्षा कहा जाता है ? उत्तर-अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय मे। प्र० २२६-जीव अनुपचरित सद्भुत व्यवहारनय से कर्ता किसकिस का है, स्पष्टता से समझाइये? उत्तर-सवर-निर्जरा-मोक्ष, निश्चय सम्यग्दर्शन-जान चरित्र, निश्चय प्रतिक्रमण-आलोचना-प्रत्याख्यान, ध्यान, भक्ति, समाधि आदि समस्त शुद्ध भावो का कर्ता है क्योकि यह सव वीतरागी क्रियाये है। प्र० २२७-कर्ता अधिकार की आठवी गाथा मे हेय-ज्ञेय-उपादेय लगाकर समझाइये ? उत्तर-(१) कर्तृत्व-अकर्तृत्व गुणरुप त्रिकाली आत्मा आश्रय करने योग्य परम उपादेय है। (२) त्रिकाली आत्मा के आश्रय से जो शुद्ध दशा प्रगटी-वह प्रगट करने योग्य उपादेय है। (३) साधक दशा मे जो व्यवहार रत्नत्रयादि के विकल्प है वह हेय है । (४) द्रव्यकर्म-नोकर्मादि सब व्यवहारनय से ज्ञेय है। प्र० २२८-जीव द्रव्यकर्म-नोकर्म का कर्ता तो कदापि नही है-ऐसा कही समयसार मे बताया है ? उत्तर - समयसार की ८५-८६ गाथा मे जो द्रव्यव र्म-नोकर्म का कर्ता जीव को मानता है वह सर्वज्ञ के मत से बाहर है और वह द्विक्रियावादी है। प्र० २२६-जो द्रव्यकर्म-नोकर्म का कर्ता जीव को मानता है उसे छहढाला मे किस नाम से सम्बोधन किया है ? उत्तर-बहिरात्मा के नाम से सम्बोधन किया है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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