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________________ ( २०७ ) प्र० २१०-इस गाथा मे निश्चयनय-व्यवहारनय क्या बतलाता ___ उत्तर-(१) निश्चयनय जीव की त्रकालिक अमूर्तिकता को बताता है । (२) व्यवहारनय पुद्गल कर्म के साथ का अनादि सम्बन्ध बताता है। इन दोनो नयो का विषय परस्पर विरोधी है, परन्तु उसके एक साथ रहने मे विरोध नहीं है। प्र० २११-तीसरी गाथा मे और इस गाथा मे क्या अन्तर है ? उत्तर-तीसरी गाथा मे पुद्गल प्राणो के साथ का व्यवहार सम्बन्ध बतलाया है और इस सातवी गाथा मे पुद्गल कर्म के साथ का व्यवहार सम्बन्ध बतलाया है। प्र० २१२~-अमूर्तिक अधिकार को जानने का क्या-क्या लाभ होना चाहिये ? उत्तर-(१) पुद्गल द्रव्यकर्म से मुझ आत्मा का सर्वथा सम्बन्ध नहीं है इसलिए मुझे वह हानि-लाभ नही कर सकता है। (२) अपने अमूर्तिक त्रैकालिक ध्र व स्वभाव का आश्रय करने से धर्म की शुरूआत, वद्धि और पूर्णता होती है। (३) आत्मा मे पूर्ण शुद्वता होने पर पद्गल कर्म के साथ का आत्यन्तिक वियोग होकर आत्मा मे सिद्ध दशा हो जाती है। प्र० २१३-अमूर्तिक इस अधिकार मे हेय-ज्ञेय-उपादेय समझाइये? उत्तर-(१) अस्पर्श, अरस, अगन्ध, अवर्ण, अशब्द, अमूर्तिक त्रिकाली ध्रुव स्वभाव आश्रय करने योग्य परम उपादेय है। (२) अमूर्त त्रिकाली स्वभाव के आश्रय से प्रगट शुद्ध पर्याये प्रगट करने योग्य उपादेय है । (३) साधक दशा मे जितना अस्थिरता का राग है वह हेय है। (४) द्रव्यकर्म का सम्बन्ध व्यवहार से ज्ञान का ज्ञेय है। प्र० २१४-छहढाला मे अमूर्तिक को किस नाम से सम्बोधन किया है और उसका अर्थ क्या है ? उत्तर-(१) बिनमूरत नाम से सम्वोधन दिया है। (२) विन
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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