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________________ ( १७६ ) उत्तर-तास ज्ञान को कारण, स्व-पर विवेक वखानी । कोटि उपाय बनाय भव्य ताको उर आनौ ।। प्र० ६८-इष्टोपदेश ५० वें श्लोक मे इस विषय मे क्या बताया उत्तर-चेतन पुद्गल भिन्न है यही तत्व सक्षेप । अन्य कथन सब है इसी के विस्तार विशेप ॥५०॥ प्र० ६९-सामायिक पाठ मे इस विषय मे क्या बताया है ? उत्तर-महा कष्ट पाता जो करता, पर पदार्थ जड देह सयोग । ___मोक्ष महल का पथ है सीधा, जड चेतन का पूर्ण वियोग ।। प्र० १००-योग सार में इस विषय मे क्या बताया है ? उत्तर-जीव पुद्गल दोऊ भिन्न है, भिन्न सकल व्यवहार । तज पुद्गल ग्रह जीव तो, गीघ्र लहे भवपार ॥५०॥ जीवाधिकार तिक्काले चदुपाणा इ द्रिय बल माड प्राणपाणो य । व्यवहारा सो जीवो णिच्चयणयदो दु चेदणा जस्स ।।३।। अर्थ –(व्यवहारा) व्यवहारनय से जिसके (तिक्काले) भूत-वर्तमान और भविष्य काल मे (इन्द्रियबलमाड) इन्द्रिय-बल-आयु (य) और (आणपाणो) श्वासोच्छवास (चदुपाणा) ये चार प्राण होते है । (दु) और (णिच्चयणय दो) निश्चयनय से (जस्स) जिसके (चेदणा) चेतना होती है (सो जीवो) वह जीव है ।। ३ ।। प्र० १०१-शुद्ध निश्चयनय से अनादि अनन्त प्रत्येक प्राणी के कौन सा प्राण है ? उत्तर-निगोद से लगाकर सिद्ध भगवान तक शुद्ध निश्चयनय से अनादि अनन्त शुद्ध चेतना प्राण ही है ।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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