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________________ (. १३१) प्र० ५-क्या चार प्रकार की इच्छा एक ही साथ होती है ? उत्तर-वहा इन चार मे से एक काल मे एक ही की प्रवृत्ति होती है। किसी समय किसी इच्छा की और किसी समय किसी इच्छा की होती रहती है। प्र०६-चार प्रकार की इच्छा किसके पाई जाती है, किसके नही पाई जाती है ? . उत्तर-वहा मूल तो मिथ्यात्वरूप मोहभाव एक सच्चे जैन बिना सर्व संसारी जीवो को पाया जाता है। प्र०७-मोह इच्छा क्या है ? उत्तर-प्रथम मोह इच्छा कार्य इस प्रकार है -स्वय तो कर्मजनित पर्यायरूप बना रहता है, उसी मे अहकार करता रहता है कि मै मनुष्य हूँ, तिर्यच हूँ इस प्रकार जैसी-जैसी पर्याय होती है उस-उस रूप ही स्वय होता हुआ प्रवर्तता है। तथा जिस पर्याय मे स्वय उत्पन्न होता है उस सम्बन्धी सयोगरूप व भिन्न रूप परद्रव्य जो हस्तादि अगरूप व धन, कुटुम्ब, मन्दिर ग्राम आदि को अपना मानकर उनको उत्पन्न करने के लिये व सम्बन्ध सदा बना रहे उसके लिये उपाय करना चाहता है। तथा सम्बन्ध हो जाने पर सुखी होना, मग्न होना व उनके वियोग मे दुखी होना शोक करना अथवा ऐसा विचार आए कि मेरे कोई आगे-पीछे नही इत्यादिरूप आकुलता का होना उसका नाम मोह इच्छा है। प्र०८-क्रोध क्या है ? उत्तर-किसी परद्रव्य को अनिष्ट मानकर उसे अन्यथा परिणमन करा ने की, उसे बिगाडने की व सत्तानाश कर देने की इच्छा वह क्रोध है। प्र०६-मान क्या है ? उत्तर-किसी परद्रव्य का उच्चपना न सुहाये व अपना उच्चपना प्रगट होने के अर्थ परद्रव्य से द्वेष करके उसे अन्यथा परिणमन कराने की इच्छा हो उसका नाम मान है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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