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________________ ( १३० ) पांचवा अधिकार चार प्रकार की इच्छात्रों का स्पष्टीकरण प्र० १ - चार प्रकार की इच्छाओ का वर्णन किस शास्त्र से आपने प्रश्नोत्तरो के रुप मे संग्रह किया है ? उत्तर—सत्ता स्वरुप से प्रश्नोत्तरो के रुप मे सग्रह किया है । प्र० २ - सत्ता स्वरूप से प्रश्नोत्तरों के रूप मे क्यो संग्रह किया है? उत्तर - अज्ञानी जीव को अपनी भूल का पता लगे और वह भूल रहित अपने स्वभाव का आश्रय लेकर भूल का अभाव करके सुखी हो - ऐसी भावना से ही सग्रह किया है । प्र० ३ - इच्छा रूप रोग क्या है और कब से है ? उत्तर- अज्ञान से उत्पन्न होने वाली इच्छा ही निश्चय से दुख है वह तुम्हे बतलाते है । यह ससारी जीव अनादि से अष्ट कर्म के उदय से उत्पन्न हुई जो अवस्था उस रूप परिणमित होता है । वहाँ भिन्न परद्रव्य, सयोगरूप परद्रव्य, विभाव परिणाम तथा ज्ञेयश्रुतज्ञान के पड़रूप भावपर्याय के धर्म उनके साथ अहकार - ममकाररूप कल्पना करके परद्रव्यों को मिथ्या इष्ट-अनिष्टरूप मानकर मोह-राग-द्वेष के वशीभूत होकर किसी परद्रव्य को आपरूप मान लेता है। जिसे इष्टरूप मान लेता है उसे ग्रहण करना चाहता है तथा जिसे पररूपअनिष्ट मान लेता है उसे दूर करना चाहता है, इस प्रकार जीव को अनादिकाल से एक इच्छारूप रोग अन्तरग मे शक्तिरूप उत्पन्न हुआ है उसके चार भेद है | प्र० ४ - इच्छा के चार भेद कौन-कौन से है ? उत्तर - (१) मोहइच्छा (२) कषाय इच्छा (३) भोग इच्छा (४) रोगाभाव इच्छा ।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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