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________________ ( १२६ ) दो चौकडी कषाय के अभाव रुप देश चारित्र को । ( ३ ) तीन चौकडी कषाय के अभाव रूप सकलचारित्र को । ( ४ ) और सज्वलनादि के अभाव रूप यथाख्यात चारित्र को स्वरुपाचरण चारित्र कहा है । प्र० १७ – स्वरुपाचरण चारित्र कौन से गुणस्थान से शुरु होकर पूर्ण होता है ? उत्तर - चौथे गुणस्थान से प्रारम्भ होकर मुनिदशा मे अधिक उच्च होकर १२वे गुणस्थान मे पूर्ण होता है । प्र० १८ - यदि शान्ति की इच्छा हो तो क्या करना ? उत्तर - आलस्य को छोडकर, आत्मा कर्तव्य समझकर, रोग और वृद्ध अवस्था आदि आने से पूर्व ही मोक्षमार्ग मे प्रवृत्त हो जाना चाहिए । प्र० १६ - प्रत्येक अज्ञानी जीव ने अनादि से क्या किया और उससे क्या नही हुआ ? उत्तर- (१) प्रत्येक ससारी जीव मिथ्यात्व, कषाय और विषयो का सेवन तो अनादिकाल से करता आया है, किन्तु उससे उसे किचित् शान्ति प्राप्त नही हुई । प्र० २० - छहढाला मे अन्तिम शिक्षा क्या दी है ? उत्तर - मनुष्यपर्याय, सत्समागम आदि सुयोग बारम्बार प्राप्त नही होते है । इसलिए उन्हे व्यर्थ न गवाकर अवश्य ही आत्महित साध लेना चाहिए |
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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