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________________ (६६) लगती है और लगेगी, उसमें आवे । ताकि सत्य बात क्या है ? उसको जानकर अपनी आत्मा का आश्रय लेकर धर्म की प्राप्ति हो। मेरे विचार मे यदि किसी का कल्याण होना है तो उसमे पूज्य श्री कानजी स्वामी मे ही निमित्तपने की योग्यता है। आपमे पवित्रता के साथ पुण्य का मेल भी उत्कृष्ट है । याद रहे, होगा अपने से हो, श्री कानजी स्वामी से नहीं। जिनेन्द्र भगवान के घर का रहस्य बतलाने वाला वर्तमान मे मेरे विचार से और कोई दृष्टिगोचर नही होता। इसलिए भाई इस कार्य को तुरन्त करो। (७) जिसने अपना कल्याण करना हो, उसे श्री उमास्वामी भगवान ने जो तत्वार्थसूत्र मे 'सद्न्य लक्षणम् और उत्पादव्यय घ्रोव्ययुक्त सत्" वताया है उसका रहस्य जानना चाहिये । उसको जानने के लिये ६ द्रव्य, सात तत्व, ४ अभाव, ६ कारक, द्रव्य-गुण पर्याय की स्वतन्त्रता उपादान-उपादेय, निश्चय-व्यवहार, निमित्त नैमित्तिक, त्यागने योग्य मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चरित्र और ग्रहण करने योग्य सम्यकदर्शन-ज्ञान-चारित्र आदि बातों का सूक्ष्म रीति से अभ्यास करना चाहिये । ताकि प्रत्येक द्रव्य-गुण-पर्याय की स्वतन्त्रता जानकर, अपने त्रिकाली स्वभाव का आश्रय लेकर सुखी होवे। इसके अलावा और उपाय नही है। (८) अपने कल्याण के लिये पुण्यभाव, पुण्यकर्म पुण्य की सामग्री तथा परलक्षी ज्ञान की किंछित्-मात्र आवश्यकता नही है । एक मात्र तू भगवान आत्मा अनादिअनन्त है ऐसा जाने, उसकी ओर दृष्टि करे । जो भगवान अनादि से शक्तिरूप था, वह पर्याय मे प्रगट हो जाता है। इसलिये सम्यकदर्शनादि प्राप्ति के लिये, पर पदार्थों से शुभाशुभ भावो से बिल्कुल दृष्टिं उठाओ। यदि पर का, शुभाशुभ भावो का जरा भी आश्रय रहेगा तो कभी भी धर्म की प्राप्ति नही होगी । वास्तव मे अपूर्ण-पूर्ण शुद्ध पर्याय भी आश्रय करने योग्य नही हैं । इसलिये एक मात्र आश्रय करने योग्य अपना भगवान ही है।
SR No.010122
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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