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________________ ऐसा जानना सम्यक एकान्त है, क्योकि "सम्यग्ज्ञान पूर्वक वैराग्य होता है" ऐसा उसमे गभित रूप से आ जाता है। और "स्त्रीपुत्रादिक का त्याग ही" धर्म है ऐसा जानना वह मिथ्या एकान्त है, क्योकि त्याग के साथ सम्यग्ज्ञान होना ही चाहिए ऐसा इसमे नही आता है (३) सम्यग्दर्शनादि से ही मुक्ति होती है यह सम्यक् एकान्त है क्योकि पर से, महाव्रतादि से नही होती है यह गौण है। और महाव्रतादि से ही मुक्ति होती है यह मिथ्या एकान्त है, क्योकि सम्यग्दर्शनादि से मुक्ति होती है ऐसा इसमे नहीं आता है। प्रश्न १६७-च्या आत्मा को शुभभाव से ही धर्म होता है वह सम्यक् एकान्त है ? उत्तर-विल्कुल नही, यह तो मिथ्या एकान्त है, क्योकि इसमे शुभाव का निषेध किया है। प्रश्न १६८-क्या शुद्ध भाष से ही धर्म होता है यह तो मिथ्याएकान्त है ? उत्तर-बिल्कुल नही, यह तो सम्यक् एकान्त है। शुद्धभाव से हो धर्म होता है यह अपित कथन है और शुभभाव से नही यह अनर्पित कथन इसमे आ ही जाता है। प्रश्न १६६-मिथ्या एकान्त के दृष्टान्त दीजिए? उत्तर-(१) आत्मा सर्वथा नित्य ही है। (२) आत्मा सर्वथा अनित्य ही है। (३) आत्मा सर्वथा एक ही है। (४) आत्मा सर्वथा अनेक ही है। (५) आत्मा को शुभभाव से ही धर्म होता है। (६) भगवान का दर्शन ही सम्यक्त्व है । (७) अणुव्रतादिक का पालन करना ही श्रावकपना है। (८) २८ मूलगुण पालन करना ही मुनिपना है। (8) चार हाथ जमीन देखकर चलना ही ईर्यासमिति है। (१०) भूखा रहना ही क्षुधा परिपहजय है। यह सब मिथ्या एकान्त है, क्योकि इनमे अन्य धर्मों का सर्वथा निषेध पाया जाता है। प्रश्न १७०-सम्यक् एकान्ती कौन है ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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