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________________ ( ५७ ) उत्तर - वस्तु सामान्य- विशेष स्वरूप है । ऐसा जिसको प्रमाण ज्ञान हुआ हो, वह वस्तु को द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा सामान्य ही है तथा वस्तु को पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा विशेष ही है ऐसी मान्यता वाले सम्यक् एकान्ती है । प्रश्न १७१ - मिथ्या एकान्ती कौन है ? उत्तर – वस्तु सामान्य- विशेष स्वरूप है । इसके बदले कोई वस्तु को सर्वथा सामान्य ही माने, कोई वस्तु को सर्वथा विशेष ही माने ऐसी मान्यता वाले दोनो मिथ्या एकान्ती हैं । प्रश्न १७२ – सम्यक् एकान्त के दृष्टान्त दीजिए उत्तर- ( १ ) आत्मा द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा नित्य ही है । (२) आत्मा पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा अनित्य ही है । (३) आत्मा द्रव्य की अपेक्षा एक ही है । ( ४ ) आत्मा गुण- पर्याय भेद की अपेक्षा अनेक ही है । (५) आत्मा को शुद्ध भाव से ही धर्म होता है । (६) आत्मा के आश्रय से श्रद्धा गुण मे से शुद्ध दशा प्रगट होना ही सम्यक्त्व है । (७) दो चौकडी के अभावरूप शुद्ध दशारूप देगचारित्र ही श्रावकपना है । (८) शुद्धोपयोगरूप दशा ही मुनिपना है । (६) तीन चौकडी के अभावरूप शुद्धि ही इर्यासमिति है । (१०) तीन चौकडी के अभावरूप शुद्धि की वृद्धि होना ही क्षुधापरिपह जय है । यह सब सम्यक् एकान्त है, क्योकि इनमे अन्य धर्मों का किसी अपेक्षा से निषेध पाया जाता है। प्रश्न १७३ – अनेकान्त के समयसार शास्त्र मे कितने बोल कहे - हैं ? उत्तर - नित्य- अनित्य, एक-अनेक तत् अतत् आदि १४ बोल कहे , हैं । प्रश्न १७४ - नित्य - अनित्य, एक-अनेक तत्-अतत् आदि जो १४ बोलो को न समझे, उसे भगवान ने क्या कहा है ? उत्तर- १४ वार पशु कहा है ।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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