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________________ ( ४८ ) अतत् है । (८) अभेद नय का पक्ष अतत् है । ( ९ ) भेदाभेद नय का पक्ष अतत् है । (१०) ज्ञान की पर्याय अतत् है । एक मात्र अपना त्रिकाली आत्मा 'वह का वह' तत् है । इस पर दृष्टि देते ही अपने भगवान का पता चल जाता है और क्रम से मोक्ष लक्ष्मी का नाथ बन जाता है । अनत् से मेरा भला है या बुरा है ऐसी मान्यता से चारों गतियो मे घूमकर निगोद का पात्र बन जाता है । प्रश्न १२६ - एक अनेकपना क्या है ? उत्तर-- अखण्ड सामान्य की अपेक्षा से द्रव्य सत् एक है और अवयवो की अपेक्षा से द्रव्य सत् अनेक भी है । प्रश्न १२७ -- सत् एक है इसमे क्या युक्ति है ? उत्तर - द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से, गुण उत्पाद - व्यय - श्रीव्य रूप अशो का अभिन्न प्रदेशी होने से इसलिए अखण्ड सामान्य की अपेक्षा से सत एक है । पर्याय का या सत् एक है; प्रश्न १२८ - द्रव्य से सत् एक कैसे है ? उत्तर - गुण पर्यायो का एक तन्मय पिण्ड द्रव्य एक है, इसलिए द्रव्य से सत एक है । " प्रश्न १२६ - क्षेत्र से सत् एक कैसे है ? उत्तर - जिस समय जिस द्रव्य के एक देश मे, जितना जो सत् स्थित है, उसी समय उसी द्रव्य के सब देशो मे ( क्षेत्रो मे ) भी उतना वही वैसा ही सत् स्थित है । इस अपेक्षा सत् क्षेत्र से एक है । - काल से सत् एक कैसे है ? प्रश्न १३० उत्तर - एक समय मे रहने वाला जो जितना और जिस प्रकार का सम्पूर्ण सत् है वही, उतना और उसी प्रकार का सम्पूर्ण सत् सव समयो में भी है, वह सदा अखण्ड है । इस अपेक्षा सत् काल से एक है । प्रश्न १३१ -- भाव से सत् एक कैसे है ? उत्तर -- सत् सब गुणो का तादात्म्य एक पिण्ड है । गुणो के अतिरिक्त उसमे और कुछ है ही नही । किसी एक गुण की अपेक्षा
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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