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________________ ( ४७ ) हो रही हैं । 'वह की वह नही है' इसको अतत् भाव कहते हैं । इस दृष्टि से प्रत्येक समय का सत् ही भिन्न-भिन्न रूप हैं । प्रश्न ११६ - तत् धर्म से क्या लाभ है ? उत्तर- इससे तत्त्व की सिद्धि होती है । प्रश्न १२० - अतत् धर्म से क्या लाभ है ? उत्तर -- इससे क्रिया, फल, कारक, साधन, साध्य, कारण-कार्य आदि भावो की सिद्धि होती है । प्रश्न १२१ - तत् - अतत् का अनेकान्त क्या है ? उत्तर - प्रत्येक वस्तु मे वस्तुपने की सिद्धि करने वाली तत्-अतत् आदि परस्पर विरुद्ध दो शक्तियो का एक ही साथ प्रकाशित होना उसे अनेकान्त कहते हैं । प्रश्न १२२ -- आत्मा में तत्-अतत्पना क्या है ? उत्तर - आत्मा 'वह का वही है' यह तत्पना है और बदलतेबदलते 'यह वह नही है' यह अतत्पना है । प्रश्न १२३ - तत् - अतत् में तीनो प्रकार के भेद विज्ञान लगाकर समझाइये ? उत्तर-७७-७८-७ε प्रश्नोत्तर के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न १२४ - आत्मा तत्रूप से है अतत्रूप से नहीं, इसको जानने क्या लाभ है ? उत्तर - आत्मा मे तत्-अतत्पना दोनो धर्मं पाये जाते हैं । अतत्पने को गौण करके तत् धर्म की ओर दृष्टि करने से सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम से निर्वाण की प्राप्ति होती है । प्रश्न १२५ - ' अतत्' में कौन-कौन आता है ? उत्तर - (१) अत्यन्त भिन्न पर पदार्थ अतत् हैं । ( २ ) आँखनाक-कान औदारिकशरीर अतत है । (३) तेजस, कार्माणशरीर अतत है । ( ४ ) शब्द और मन अतत् है । ( ५ ) शुभाशुभ भाव अतत् है । (६) पूर्ण - अपूर्ण शुद्ध पर्याय का पक्ष अतत् है । ( ७ ) भेद नय का पक्ष
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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