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________________ ( 274 ) प्रश्न २८५--क्षायोपरामिक भाव किसे कहते हैं और इसके कितने भेद हैं ? उत्तर--कर्म मे क्षयोपशम को अनुसरण करके होने वाले भाव को क्षायोपशमिक भाव कहते है / इसके 18 भेद है। 4 ज्ञान [मति, श्रुत, अवधि और मन पर्यय], 3 अज्ञान [कुमति, कुश्रुत, विभग], 3 दर्शन [चक्षु अचक्षु, अवधि], 5 क्षायोपशमिक दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य], 1 क्षायोपमिक सम्यक्त्व, 1 क्षायोपगमिक चारित्र, 1 सयमासयम / ये आत्मा के 18 पर्यायो के नाम हैं। सादि सान्त भाव हैं। इनमे 4 ज्ञान और 3 अज्ञान तो ज्ञान गुण की एक समय की पर्याये है। 3 दर्शन, दर्शन गुण की एक समय की पर्याय है। दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य ये आत्मा मे 5 स्वतन्त्र गुण हैं / प्रत्येक भाव अपने-अपने गुण की एक समय की पर्याय है। क्षायोपशमिक सम्यक्त्व श्रद्धा गुण को एक समय की स्वभाव पर्याय है। क्षायोपगमिक सयम और सयमा-सयम चारित्र गुण की एक समय की आशिक स्वभाव पर्याय है / 4 ज्ञान तो चौथे से बारहवे तक पाये जाते है / 3 अज्ञान पहले तीन गुणस्थानो मे हैं। 3 दर्शन और 5 दानादिक पहले से बारहवे तक पाये जाते हैं / क्षायोपशमिक सम्यक्त्व चौथे से सातवें तक पाया जाता है / क्षायोपशमिक चारित्र छठे से दसवे तक है और सयमासयम केवल एक पाचवे गुणस्थान में पाया जाता है। प्रश्न २८६-औदायिक भाव किसे कहते हैं और इसके कितने भेद हैं तथा उनमे किस-किस कर्म का निमित्त है ? - उत्तर-कर्म के उदय को अनुसरण करके होने वाले भाव को औदयिक भाव कहते हैं। इसके 21 भेद हैं / 4 गति भाव, 4 कषाय भाव, 3 लिंग भाव, 1 मिथ्यादर्शन भाव, 1 अज्ञान भाव, 1 असयम भाव, 1 असिद्धत्व भाव, 6 लेश्या भाव / गति भाव मे गति नामा नाम कर्म के उदय का सहचर दर्शनमोह तथा चारित्रमोह का उदय निमित्त है। कषाय, लिंग, असयम इनमे चारित्रमोह का उदय निमित्त है। अज्ञान
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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