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________________ ( 275 ) भाव में ज्ञानावरण का उदय अश निमित्त है / मिथ्यादर्शन में दर्शनमोह का उदय निमित्त है। असिद्धत्व भाव मे आठा कर्मों का उदय निमित्त है। लेश्या भाव है योग का सहचर और मोहनीय निमित्त है / ये सब दुखरूप हैं / अज्ञान भाव बध कारण नहीं है-शेप सब बन्ध के कारण है। आत्मा का बुरा इन औदयिक भावो से ही है। ये यात्मा के एक समय के परिणमन रूप भाव हैं / पर्याये हैं। सब क्षणिक नाशवान हैं। सादि सान्त हैं। प्रश्न २८७-~पारिणामिक भाव किसे कहते हैं और इसके कितने भेद हैं ? उत्तर-जो भाव कर्म के उपशम, क्षय, क्षयोपशम या उदय की अपेक्षा न रखता हुआ जीव का स्वभाव मात्र हो-उसको पारिणामिक भाव कहते हैं। इसके 3 भेद हैं / 1 जीवत्व, 2 भव्यत्व, 3 अभयत्व / जीवत्व भाव द्रव्यरूप है। भव्यत्व अभव्यत्व भाव गुण रूप हैं / भव्य जीव में भव्यत्व गुण का सम्यक्त्व होने से पहले अपक्व परिणमन चलता है। चौथे से सिद्ध तक पक्व परिणमन है। अभव्य जीव मे अभव्यत्व गुण का अभव्यत्व परिणमन होता है। जीवत्व भाव, ज्ञायक भाव, पारिणामिक भाव, परम पारिणामिक भाव, कारण शुद्ध पर्याय आदि अनेक नामो से कहा जाता है। यह सब जीवो मे है। भव्य अभव्य मे से एक जीव मे कोई एक होता है। भव्य मे भव्यत्व, अभव्य मे अभव्यत्व / भव्यत्व अभव्यत्व की अपेक्षा जीव ही मूल मे दो प्रकार के हैं। अभव्य ससार रुचि को कभी नही छोडता है। भव्य स्वकाल की योग्यतानुसार पुरुषार्थ करके ससार रुचि का नाश कर मोक्ष पाता है / पर सब भव्य मोक्ष प्राप्त करे-ऐसा नियम नही है। जो पुरुपार्थ करता है-वह प्राप्त कर लेता है। योग्यता सब भव्यो मे है। अभव्य मे पर्यायदृष्टि से योग्यता नही है। द्रव्य स्वभाव तो उसका भी मोक्ष प्रश्न २८८-कर्म किसे कहते हैं ? वे कितने हैं ?
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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