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________________ है। कर्मबध से गतियो की प्राप्ति होती है। गतियो की प्राप्ति से शरीर का सम्बन्ध होता है। शरीर के सम्बन्ध से इन्द्रियो का सम्बन्ध होता है। इन्द्रियो के सम्बन्ध से विषय ग्रहण की इच्छा होती है। विषय ग्रहण को इच्छा से राग-द्वेष होता है और फिर रागद्वेप से कर्मबध होता है / इस प्रकार ससार चक्र चलता ही रहता है। प्रश्न ७३-ससार चक्र का अभाव कैसे हो? उत्तर-रागद्वेप रहित अपने ज्ञायक स्वभाव का आश्रय करे तो कर्मबन्ध नही होगा / कर्मबन्ध न होने से गति की प्राप्ति नही होगी। गति की प्राप्ति ना होने से शरीर का सयोग नही होगा। शरीर का सयोग ना होने से इन्द्रियो का सयोग नही बनेगा। इन्द्रियो का सयोग ना होने से विपय ग्रहण की इच्छा ना रहेगी। जब विषय ग्रहण को इच्छा ना रहेगी तो ससार चक्र का अभाव हो जावेगा। जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कहा मोक्ष-मार्ग सम्बन्धी प्रकरण समाप्त हुआ। जय महावीर-जय महावीर पचाध्यायी पर 291 प्रश्नोत्तर-पाँचवां अधिकार (प० सरनाराम कृत) पहले भाग का दृष्टि परिज्ञान सत स्वभाव से ही अनेक धर्मात्मक रूप बना हुआ अखण्ड पिण्ड है। उसका जीव को ज्ञान नही है। उसका ज्ञान कराने के लिए जैन
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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