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________________ ( 154 ) अत इसे निरपेक्ष पर्याय अर्थात ध्र व पर्याय भी कहते हैं। जैसे-समुद्र मे पानी के दल की सपाटी एक स्वभाव है, उसी प्रकार आत्मा मे "कारण शुद्ध पर्याय" है। वह सदा एक समान है। उसको औदयिक आदि चार भावो की अपेक्षा नही लगती है। यह विशेष पारिणामिक भाव रूप है। यह आत्मा मे हमेशा सदृशपने वर्तती है। यह कारण शुद्ध पर्याय प्रत्येक गुण मे भी है। प्रश्न ३६-पारिणामिक भाव की पूर्णता किससे है और सम्यग्दर्शन का कारण कौन है ? उत्तर-सामान्य पारिणामिक भाव और विशेष पारिणामिक भाव यह दोनो मिलकर पारिणामिक भाव की पूर्णता है। इसे निरपेक्ष स्वभाव अर्थात शुद्ध निरजन एक स्वभाव, अनादिनिधन भाव भी कहते है / जैसे-समुद्र मे पानी का दल, पानी का शीतल स्वभाव और पानी की सपाटी ये तीनो अभेदरूप वह समुद्र है। ये तीनो हमेशा ऐसे के ऐसे' ही रहते है, उसी प्रकार आत्मा मे आत्मद्रव्य उसके ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुण और उसका सदृशरूप-ध्र व-वर्तमान अर्थात कारण शुद्ध पर्याय ये तीनो मिलकर वस्तु स्वरूप की पूर्णता है। यही परम पारिणामिक भाव है और यही सम्यग्दर्शन का आश्रयभूत है। प्रश्न ४०-क्या द्रव्य, गुण और कारण शुद्ध पर्याय भिन्न-भिन्न उत्तर-बिल्कुल नही; परन्तु जैसे-'समुद्र की सपाटी' ऐसा वोलने मे आता है। फिर भी समुद्र का पानी, उसकी शीतलता और उसकी वर्तमान एकरूप सपाटी ये तीनो भिन्न-भिन्न नही है, उसी प्रकार आत्मा मे द्रव्य, गुण जो कि सामान्य पारिणामिक भाव है और उसकी कारण शुद्ध पर्याय वह विशेष पारिणामिक भाव है। फिर भी द्रव्य, गुण और उसका ध्र व रूप वर्तमान ये तीनो अर्थात सामान्य पारिणामिक भाव और विशेष पारिणामिक भाव वास्तव मे भिन्नभिन्न नहीं हैं, अभेद ही है। यही वस्तु स्वभाव की पूर्णता है। इसी
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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