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________________ ( 155 ) के आश्रय से सम्यग्दर्शन, श्रावकपना, मुनिपना, श्रेणीपना, अरहतपना और सिद्धपने की प्राप्ति होती है। प्रश्न ४१-द्रव्य, गुण सामान्य पारिणामिकभाव और कारण शुद्ध पर्याय अर्थात् विशेष पारिणामिक भाव का स्पष्टीकरण करिये ताकि स्पष्ट समझ में आ जावे ? उत्तर-(१) द्रव्यगुण-पर्याय मे सज्ञा लक्षणादि भेद दिखते हैं परन्तु वस्तु स्वरूप से भिन्न नही है। (2) जो द्रव्य-गुण तथा निरपेक्ष कारण शुद्ध पर्याय है / वह त्रिकाल एक रूप है / उसमे हमेशा सदृश परिणमन हैं। अपेक्षित पर्यायो मे उत्पाद-व्ययरूप विसदृश परिणमन है / याद रहे ससार और मोक्ष दोनो पर्यायो को अपेक्षित पर्यायो मे गिना है। (3) जब अपेक्षित पर्याय का झुकाव ध्र व वस्तु की तरफ परम पारिणामिक भाव की तरफ जाता है तब वह ध्र ववस्तु एकरूप सम्पूर्ण होने से वहाँ उस पर्याय का उपयोग स्थिर रह सकता है वह धर्म की प्राप्ति है। और फिर जैसे-जैसे स्थिरता बढती जाती है वैसे-वैसे उस पर्याय की निर्मलता बढती जाती है। (4) परम पारिणामिक के स्वरूप को श्रद्धा मे लेना, वही सम्यग्दर्शन है। (5) सम्यग्दर्शन के ध्येयरूप परम पारिणामिक भाव ध्रुव है और उसके साथ मे त्रिकाल अभेद रूप रही हुई कारण शुद्ध पर्याय है उसको "पूजित पचमभाव परिणति" कहने मे आता है। (6) द्रव्यदृष्टि मे जो पर्याय गौण करने की बात आती है वह तो औदयिक आदि चार भावो की पर्याय समझना चाहिए। पचम भाव परिणति अर्थात् कारण शुद्ध पर्याय गौण हो नहीं सकती है, क्योकि वह तो वस्तु के साथ मे त्रिकाल अभेद है। सम्यग्दर्शनादि निर्मल पर्यायो को द्रव्य-गुण और कारण शुद्ध पर्याय-तीनो की अभेदता का ही अवलम्बन है। तीनो का भिन्न-भिन्न अवलम्बन नही है। (7) धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्यो की पर्याय सदा एक रूप पारिणामिक भाव से ही वर्तती है। उसका ज्ञाता जीव है। जीव
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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