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________________ ( 152 ) कार (3) प्रत्येक कार्य का सच्चा कारण उस समय पर्याय की योग्यता ही है। प्रश्न ३२-क्या माने तो आकुलता की उत्पत्ति हो और क्या माने तो अतीन्द्रिय आनन्द की प्राप्ति हो? ___ उत्तर-अपनी इच्छानुसार पर पदार्थों का परिणमन होना माने तो हप होता है वह तो राग है और उसमे आकुलता की वृद्धि होती है / जान के अनुसार सव पदार्थों का परिणमन बने तो अतीन्द्रिय आनन्द की प्राप्ति होती है। प्रश्न ३३---सिद्धान्त किसे कहते हैं ? उत्तर-तीन काल और तीन लोक मे जिसमे जरा भी हेर-फेर ना हो सके उसे सिद्धान्त कहते है। जैसे एक और एक दो होते हैं। आप ल्स जावो, अमेरिका जावो, चीन जाओ, सब जगह एक और एक दो ही होगे। प्रश्न ३४-जिनेन्द्र भगवान के सिद्धान्त क्या-क्या हैं, जिसमें कमी भी जरा भी हेर-फेर नहीं हो सकता है ? उत्तर-(१) एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से कर्ता-भोक्ता का सम्बन्ध किसी भी अपेक्षा नहीं है। (2) आत्मा का सर्व पदार्थों के साथ व्यवहार मे ज्ञेय-ज्ञायक सवध है। (3) एक मात्र अपने भूतार्थ स्वभाव के आश्रय से ही सम्यग्दर्शन से लेकर सिद्ध दशा तक की प्राप्ति होती है, पर के, विकार के और एक समय की पर्याय के आ - य से नही / (4) कार्य हमेशा उपादान से ही होता है निमित्त से नहीं होता। परन्तु जबजब उपादान मे कार्य होता है, वहाँ उचित निमित्त की सन्निधि होती है-ऐसा वस्तु का स्वभाव है। प्रश्न ३५-छह द्रव्यो का स्वभाव क्या है, इनको यथार्थ समझने से हमें क्या बोधपाठ मिलता है और शान्ति की प्राप्ति कैसे हो सकती उत्तर-~-जाति अपेक्षा छह द्रव्यो मे तीन जोडे बनते हैं ? .,
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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