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________________ ( 151 ) (4) द्रव्यानुयोग कहता है-'ऐसा ही है।' दृष्टान्त के रूप मे उपवास को चारो अनुयोगो पर घटाना है और उसका फल वीतरागता है। विचारिये--(१)द्रव्यानुयोग उपवास किसे कहता है ? उप =नजदीक, वास =रहना, अर्थात् ज्ञायक स्वभावी आत्मा के नजदीक मे रहना वह उपवास है। (2) करुणानुयोग उपवास किसे कहता है ? खाने का राग छोडा उसे उपवास कहता है। जो अपने मे वास करेगा, क्या उस समय उसे खाने का राग होगा ? कभी नहीं / (3) चरणानुयोग उपवास किसे कहता है ? आहार के त्याग को उपवास कहता है / जब आत्मा मे लीन होगा, तो क्या रोटी खाता हुआ दिखेगा ? कभी भी नहीं। चरणानुयोग मे कहा जाता है कि आहार का त्याग किया। (4) प्रथमानुयोग इतना शुभभाव किया तो ऐसा पुण्यवन्ध हुआ और उसका फल अच्छा सयोग है, यह प्रथमानुयोग बताता है / प्रश्न २६-सुभाषिरत्न सदोह मे उपवास किसे कहा है ? उत्तर-"कषायविपयाहारो त्यागो तत्र विधीयते / उपवास स विज्ञेय शेप लघनक विदु / अर्थ-जहाँ कषाय, विपय और आहार का त्याग किया जाता है उसे उपवास जानना / शेप को श्री गुरु लघन कहते हैं। प्रश्न ३०-उपयोग शब्द कितने अर्थों मे किस-किस प्रकार प्रयुक्त होता है? उत्तर-(१) चैतन्यानुविधायी आत्म परिणाम अर्थात चैतन्य-गुण के साथ सम्बन्ध रखने वाला जीव के परिणाम को उपयोग कहते हैं, (2) ज्ञान-दर्शन गुण को भी उपयोग कहते है, (3) ज्ञान-दर्शन गुण की पर्याय को भी उपयोग कहते हैं। (4) आत्मा के चारित्र गुण के अशुभ-शुभ और शुद्ध भाव को भी उपयोग कहते हैं। प्रश्न ३१-क्या-क्या जाने तो अनन्त ससार का परिभ्रमण क्षण भर में अभाव हो जावे? उत्तर-(१) वस्तु के स्वभाव की व्यवस्था, (2) सर्वज्ञ का स्वी
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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