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________________ ( 135 ) उत्तर-मात्र एक पर्याय मे होती है और वह केवलज्ञान है। प्रश्न १६०-दर्शनगुण की पर्याय में निमित्त-नैमित्तिक क्या है ? उत्तर-दर्शनगुण की क्षायोपशमिक, औदयिक और क्षायिक तीन दशा नैमित्तिक है और दर्शनावरणीय कर्म की क्षयोपशम, उदय और. क्षय तीन दशा निमित्त है। प्रश्न १६१-दर्शनगुण की चार पर्यायो मे से क्षायोपशमिक और औदयिकपना कितनों में हैं ? उत्तर-दर्शनगुण की तीन पर्यायो मे क्षायोपशमिकपना है और क्षयोपशम के साथ जितना-जितना दर्शनावरणीय कर्म का उदय है उतना-उतना औदयिकपना है। प्रश्न १९२-दर्शनगुण की चार पर्यायो मे से क्षायिक कितनों में औदधिकप दर्शनगुण सतना जितन उत्तर-मात्र एक में होता है और वह केवलदर्शन है। प्रश्न १६३-दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य की पर्यायों में निमित्त नैमित्तिक क्या है ? उत्तर-दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य वह आत्मा के स्वतन्त्र गुण है इन सब गुणो की क्षायोपशमिक, औदयिक और क्षायिकदशा नैमित्तिक है और अन्तराय कर्म की क्षयोपशम, उदय और क्षय दशा निमित्त है। प्रश्न १९४-दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य में क्षायोपशमिक और औदयिक दशा कहाँ से कहाँ तक है ? उत्तर-पहले गुणस्थान से १२वे गुणस्थान तब सबकी क्षायोपशमिक दशा और जितना-जितना उदय है उतना-उतना औदयिक भाव है। प्रश्न १९५-दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य में क्षायिक - दशा कहाँ से कहाँ तक है ? उत्तर-१३वे गुणस्थान से सिद्धदशा तक सवकी क्षायिक दशा है।।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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