SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ६१ ) प्रश्न ९८ आजकल तो कोई जीव छहद्रव्य, सात तत्वो के नाम लक्षणादि भी नहीं जानते और वतादि मे प्रवर्तते हैं, क्या वे आत्महित साध सकते हैं ? उत्तर-वे जीव आत्महित नही साध सकते है। शास्त्रो मे आया है कि कितने ही जीव तो ऐसे हैं जो तत्वादिक के भली भांति नाम भी नही जानते केवल व्रतादिक मे ही प्रवर्तते है। कितने ही जीव ऐसे है जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान का अयथार्थ साधन करके व्रतादि मे प्रवर्तते है। यद्यपि वे व्रतादि का यथार्थ आचरण करते है तथापि यथार्थ श्रद्धानज्ञान बिना सर्व आचरण मिथ्याचारित्र ही है। प्रश्न 88-सम्यग्दर्शन के विना व्रतादि में प्रवर्तते हैं वह मोक्ष का साधन नहीं है ऐसा कहीं श्री अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है ? उत्तर-कलश १४२ मे श्री १० राजमल जी ने लिखा है कि 'विशुद्ध शुभोपयोग रूप परिणाम, जैनोक्त सूत्र का अध्ययन, जीवादि द्रव्यो के स्वरूप का वारम्बार स्मरण, पच परमेष्टी की भक्ति इत्यादि है जो अनेक क्रिया भेद उनके द्वारा बहुत घटाटोप करते हैं तो करो, तथापि शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति होगी सो तो शुद्ध ज्ञान (ज्ञायक स्वभाव) द्वारा होगी। तथा महाव्रतादि परम्परा आगे मोक्ष का कारण होगी, ऐसा भ्रम उत्पन्न होता है सो झूठा है। महा परीपहो का सहना बहुत बोझ उसके द्वारा बहुत काल पर्यन्त मरके चूरा होते हुए वहुत कष्ट करते है, तो करो तथापि ऐसा करते हुए कर्मक्षय तो नही होता।' प्रश्न १००-पचास्तिकाय गा० १७२ मे क्या बताया है ? उत्तर-तेरह प्रकार का चारित्र होने पर भी उसका मोक्षमार्ग मे निषेध किया है। प्रश्न १०१-प्रवचनसार मे क्या बताया है ? उत्तर-आत्म अनुभव बिना सयमभाव को अनर्थकारी कहा है। क्योकि तत्वज्ञान होने पर ही आचरण कार्यकारी कहा जाता है।
SR No.010119
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy