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________________ उत्तर-उसने अधिकरणकारक नही माना। प्रश्न २०७-मोक्ष का आधार कर्म का अभाव कब माना जा सकता है ? उत्तर-जवकि द्रव्यकर्म जीव हो जावे तो मोक्ष का आधार द्रव्य कर्म का अभाव माना जा सकता है। लेकिन ऐसा हो ही नही सकता। प्रश्न २०८--मोक्ष का आधार कौन रहा ? उत्तर-मोक्ष का आधार त्रिकाली आत्मा है और वास्तव मे मोक्ष का आधार उस समय पर्याय की योग्यता ही है। प्रश्न २०६-अधिकरण कारक को कब माना कहा जा सकता है? उत्तर-प्रत्येक द्रव्य-गुण-पर्याय का आधार कथन्चित् निरपेक्ष है ऐसा माने तब अधिकरण कारक को माना कहा जा सकता है। प्रश्न २१०-क्या गुरु को शिष्य का आधार है? उत्तर-विल्कुल नही, क्योकि गुरु को अपना ही आधार है, शिष्य का नही । तब अधिकरण कारक को माना। प्रश्न २११-क्या गुरु को शिष्य का आधार है ? इसमें अधिकरण कारक को कब नही माना? उत्तर-गुरु को शिष्य का आधार है ऐसा माने तो अधिकरण कारक को नहीं माना। प्रश्न २१२-गुरु को शिष्य का आधार कब कहा जा सकता है ? उत्तर-गुरु को अपनी आत्मा का आधार है इसके बदले शिष्य की आत्मा गुरु की आत्मा बन जावे तो गुरु को शिष्य का आधार कहा जा सकता है लेकिन ऐसा हो सकता नहीं। प्रश्न २१३-क्या गुरु को शिष्य का आधार है ? इसमे सच्चा आधार कौन रहा? उत्तर-गुरु को अपनी आत्मा का आधार है और वास्तव मे गुरु को "उस समय पर्याय की योग्यता का आधार" है। प्रश्न २१४-क्या आत्मा को कर्म का आधार है ?
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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