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________________ ( ५३ ) उत्तर-अनादि से अज्ञानी जीव ने कार्य के लिए पर का आधार माना है। उसका फल चारो गतियो मे घूमकर निगोद रहा। प्रश्न २०१-धर्म के लिए अज्ञानी ने किस-किस का आधार माना है? उत्तर-(१) अपनी आत्मा को छोडकर तीर्थंकरो का, मुनियो का, अत्यन्त भिन्न पर पदार्थों का, आधार माना, (२) शरीर-इन्द्रियाँ ठीक रहे तो धर्म हो उसका आधार माना है, (३) कर्म के क्षय आदि हों तो धर्म हो उसका आधार माना है, (४) शुभ भाव हो तो धर्म हो उसका आधार माना है, (५) भेदनय के पक्ष का आधार माना है, (६) अभेदनय के पक्ष का आधार माना है, (७) भेदाभेद नय के पक्ष का आधार माना है और उसका फल अनन्त ससार है। प्रश्न २०२–क्या एक वस्तु को दूसरी वस्तु का आधार नहीं है ? उत्तर-बिल्कुल नही, क्योकि प्रत्येक वस्तु अपना-अपना कार्य अपने-अपने आधार से करती है, पर की अपेक्षा नही रखती है। प्रश्न २०३-क्या शरीर को रोटी का आधार है ? उत्तर-बिल्कुल नहीं, क्योकि शरीर का आधार आहारवर्गणा है, रोटी और जीव नही। प्रश्न २०४-~-शरीर को रोटी का आधार है, इसमे अधिकरणकारक को कब माना और कब नहीं माना? उत्तर-शरीर को आहारवर्गणा का आधार है रोटी का नही अब अधिकरणकारक को माना । और रोटी ही शरीर का आधार है ऐसा मानें तो उसने अधिकरणकारक को नही माना। प्रश्न २०५-~-क्या मोक्ष का आधार कर्म का अभाव है ।। उत्तर-बिल्कुल नही, क्योकि मोक्ष का आधार आत्मा है, कर्म का अभाव नही है तव अधिकरण कारक को माना। प्रश्न २०६-मोक्ष का आधार कर्म का अभाव ही है ऐसा कहें तो क्या दोष आता है?
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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