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________________ ( ४२ ) उत्तर - प्रश्न १२५ तक के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न १३१ - गृहीत मिथ्यादृष्टि गौतम को एक ही साथ सम्यग्दर्शन, मुनि, गणधरपना चार ज्ञान का उघाड़ कैसे हो गया ? कर्म कारक को कब नहीं माना और कत्र माना ? उत्तर - प्रश्न १२५ तक के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न १३२ - नित्यनिगोद से निकलकर आठ वर्ष को अवस्था में धर्म की प्राप्ति कैसे हो गयी ? कर्म कारक को कब नहीं माना और कव माना ? उत्तर - प्रश्न १२५ तक के अनुसार उत्तर दो । प्रश्न १३३ - प्रत्येक समय प्रत्येक द्रव्य मे कार्य होता ही रहता है यह कभी रुकता ही नहीं यह क्या सिद्ध करता है ? उत्तर - कार्य (कर्म) को सिद्ध करता है और क्रमवद्ध पर्याय को सिद्ध करता है । प्रश्न १३४ - कर्म कारक को कब माना ? उत्तर - दृष्टि अपने त्रिकाली भगवान पर आई तो कर्मकारक को माना । करण कारक का स्पष्टीकरण प्रश्न १३५ -- करण कारक किसे कहते हैं ? उत्तर - उस परिणाम के ( कार्य का ) साधकतम अर्थात उत्कृष्ट साधन को करण कहते हैं । ? प्रश्न १३६ - करण कारक मे " साधकतम " दया बताता है। उत्तर—“साधकतम” यह बताता है कि उत्कृष्ट साधन कर्ता से बाहर नही है । प्रश्न १३७ - कार्य का उत्कृष्ट साधन क्या बताता है ? उत्तर - कार्य का मध्यम साधन, जघन्य साधन नही है, मात्र कार्य का उत्कृष्ट साधन ही कारण है अन्य नही है । प्रश्न १३८ - कार्य के साधन कितने कहे जाते हैं ?
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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