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________________ ( २१ ) प्रश्न १८ - कारक का निरूपण कितने प्रकार से है ? उत्तर - दो प्रकार से है - निश्चयकारक, व्यवहारकारक । प्रश्न १६ - जो व्यवहार कारक है उन्हीं को सर्वथा सच्चा माने तो उसे शास्त्रो में क्या-क्या कहा है ? उत्तर - ( १ ) पुरुषार्थ सिद्धिपाय मे 'तस्य देशना नास्ति' कहा है । ( २ ) समयसार कलश ५५ मे 'यह अहकाररूप मोह अज्ञान अन्धकार है, उसका सुलटना दुर्निवार है' ऐसा कहा है । (३) प्रवचनसार मे 'पद पद पर धोखा खाता है' ऐसा कहा है । ( ४ ) आत्मावलोकन मे 'हरामजादोपना' कहा है । (५) समयसार मे 'मिथ्यादृष्टि तथा उसका फल ससार है' ऐसा कहा है । (६) मोक्षमार्गप्रकाशक मे 'उसके सब धर्म के अग मिथ्यात्व भाव को प्राप्त होते हैं तथा 'मिथ्यादर्शन' व अकार्यकारी तथा 'अनीति' आदि शब्दो से सम्वोधन किया है । इसलिए जो व्यवहार के कथन को सच्चा मानता है उससे मिथ्यात्व होता है और उसे कभी भी धर्म की प्राप्ति नही होती है । प्रश्न २० - व्यवहारकारक के विषय मे क्या समझना और क्या याद रखना चाहिए ? उत्तर- "परमार्थत कोई द्रव्य किसी का कर्ता हर्ता नही हो । सकता", इसलिए यह व्यवहारकारक असत्य है । वे मात्र उपचरित असदभूत व्यवहारर्नय से कहे जाते हैं । निश्चय से किसी द्रव्य के साथ कारकपने का सम्बन्ध है ही नही । प्रश्न २१ - जहाँ शास्त्रो मे व्यवहारकारक और निश्चयकारक का कथन किया हो, वहाँ क्या जानना चाहिए ? उत्तर - जहाँ व्यवहारकारक का निरुपण किया हो उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोडना और जहाँ निश्चयकारक का निरुपण किया हो उसे सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान अगीकार करना, क्योकि 'समयसार कलश १७३ मे कहा है कि व्यवहारकारक मे जो अध्यवसाय है सो समस्त ही छोडना - ऐसा जिनदेवो ने कहा है । इसलिए सम
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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