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________________ ( २२ ) व्यवहारकारक का श्रद्धान छोडकर निश्चयकारक को जानकर अपने ज्ञानधन रूप मे प्रवर्तना युक्त है । प्रश्न २२ - निश्चयकारक और व्यवहारकारक के विषय मे कुन्दकुन्द भगवान ने मोक्षपाहुड गाथा ३१ मे क्या कहा है ? उत्तर - जो व्यवहारकारक की श्रद्धा छोड़ता है वह योगी अपने जाता है तथा जो व्यवहारकारको से लाभ मानता है - वह अपने आत्म कार्यं मे सोता है । इसलिए व्यवहारकारक का श्रद्धान छोडकर निश्चयकारक का श्रद्धान करना योग्य है । { प्रश्न २३ - व्यवहारकारक का श्रद्धान छोड़कर निश्चय कारक का श्रद्धान क्यो करना योग्य है ? उत्तर - व्यवहारनय = निश्चयकारक और व्यवहारकारक को किसी को किसी मे मिलाकर निरुपण करता है सो ऐसे ही श्रद्धान से मिथ्यात्व है इसलिये उसका त्याग करना । तथा निश्चयनय = निश्चयकारक और व्यवहारकारक को यथावत् निरूपण करता है किसी को किसी मे नही मिलाता है, सो ऐसे ही श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है इसलिए उसका श्रद्धान करना । Z3 प्रश्न २४ - आप कहते हो - व्यवहारकारक के श्रद्धान से मिथ्यात्व' होता है इसलिये उसका श्रद्धान छोडो और निश्चयकारक के श्रद्धान से सम्यक्त्व होता है इसलिये उसका श्रद्धान करो, परन्तु जिन मर्ग मे दोनो कारको का ग्रहण करना कहा है सो कैसे है ? उत्तर - जिनमार्ग मे जहाँ निश्चयकारक की मुख्यता लिये व्याख्यान है, उसे तो “सत्यार्थ ऐसे ही है" - ऐसा जानना । तथा जहाँ व्यवहारकारक की मुख्यता लिये व्याख्यान है, उसे "ऐसे है नही, ' निमित्तादि की अपेक्षा उपचार किया है ऐसा जानना " - इस प्रकार जानने का नाम ही निश्चयकारक और व्यवहारकारक का ग्रहण है । प्रश्न २५ – कोई-कोई विद्वान दोनो कारको के व्याख्यान को
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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