SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४१ ) कुछ भी नही कर सकता है और जो स्वत अपना कार्य करने मे समर्थ है उसका भी पर कुछ नही कर सकता है। प्रश्न ४२-मुक्त दशा होने पर अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण का क्या नाम है ? और क्या वह नियम से होता है ? उत्तर-उसका नाम अयोगी केवली चौदहवाँ गुणस्थान है और वह नियम से होता है। प्रश्न ४३-कोई मात्र सामान्य अंश को ही उपादान कहे, तो क्या दोष आता है ? उत्तर-वह उपादान का स्वरूप न जानने वाला वेदान्त मत 'वाला है। प्रश्न ४४-कोई मात्र विशेष अश को ही उपादान कहे, तो क्या दोष आता है ? . उत्तर-वह उपादान का स्वरूप न जानने वाला बौद्धमत वाला प्रश्न ४५--उपादान और निमित्त कारण हैं या कार्य हैं ? उत्तर-दोनो कारण हैं कार्य नही है। प्रश्न ४६-निमित्त और नैमित्तिक कारण हैं या कार्य है ? उत्तर-निमित्त कारण है और नैमित्तिक कार्य है। प्रश्न ४७-पर्याय नियत है या अनियत है ? उत्तर--पर्याय स्वय से नियत है। प्रश्न ४५-पर्याय नियत है यह जरा स्पष्ट करो ? उत्तर-तीन काल के जितने समय हैं, उतनी ही एक-एक गुण मे पर्याय होती हैं। उसे जरा भी आगे-पीछे नही किया जा सकता है क्योकि एक पर्याय को आगे-पीछे करना माने तो गुण-द्रव्य के नाश का प्रसग उपस्थित होवेगा। प्रश्न ४६-प्रत्येक कार्य क्रमबद्ध और निश्चित है तो हम मिलाने की बात कहाँ से आई ?
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy