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________________ ( १४० ) प्रश्न ३५-निमित्त उपादान में कुछ करे। ऐसा माना जावे तो क्या दोष आता है ? उत्तर-उसने निमित्त को निमित्त न मानकर उपादान माना। प्रश्न ३६-यह जीव संसार मे क्यो भ्रमण कर रहा है । उत्तर-निमित्त को निमित्त न मानकर परन्तु निमित्त को उपादान मानकर ससार मे भ्रमण कर रहा है । प्रश्न ३७--क्या निमित्त नहीं है ? उत्तर--(१) निमित्त हैं। (२) निमित्त जानने योग्य है। (३) आश्रय करने योग्य नही है। प्रश्न ३८-निमित्त का प्रभाव पड़ता है यह मान्यता किसकी है ? उत्तर-अज्ञानी मिथ्यादृष्टियो की है। प्रश्त ३६-आजकल के पडित नाम धराने वाले अपने को दिगम्बर धर्म के ठेकेदार मानने वाले कहते हैं कि निमित्त बिना काम नहीं होता। गुरु बिना ज्ञान नहीं होता। कर्म का अभाव हुए बिना मोक्ष नहीं होता है। शुभ भाव करे तो धर्म की प्राप्ति हो। क्या यह उनका कहना गलत है ? उत्तर-बिल्कुल गलत है, क्योकि निमित्त बिना काम नही होता आदि मान्यता अन्य मतो की है। दिगम्बर धर्म की आड मे अन्य मत की पुष्टि करने वाले चारो गतियो मे घूमकर निगोद के पात्र हैं। प्रश्न ४०-उपादान और निमित्त किस नय का कथन है ? उत्तर-उपादान निश्चय नय का कथन है और निमित्त व्यवहार नय का कथन है। प्रश्न ४१-याद रखने योग्य बातें क्या-क्या हैं ? उत्तर-(१) अनन्तरपूर्व पर्याय का व्यय होकर जो उत्पाद रूप पर्याय होती है, वह द्रव्य मे होने योग्य होवे, वह ही होती है अन्य नही होती है। (२) जो स्वय स्वत कार्य करने में असमर्थ है उसका पर
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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