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________________ ( १३६ ) उसका अर्थ "ऐसा है नही, निमित्तादि की ऐसा जानना । ऐसा पात्र जीव को निमित्त अपेक्षा) कथन किया हो, अपेक्षा कथन किया है" ज्ञान कराता है । प्रश्न ३२ - उपादान क्या बताता है ? उत्तर - उपादान कहता है जो मैं कहता हूँ उसे सत्य मानना, निमित्त की बात झूठ मानना, क्योकि मै किसी को किसी मे मिलाकर निरूपण नही करता, मेरे श्रद्धान से सम्यक्त्वादि की प्राप्ति होकर क्रम से मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त करेगा और निमित्त किसी को किसी मे मिलाकर निरूपण करता है उसके श्रद्धान से चारो गतियो मे घूमकर निगोद को प्राप्त होगा । और जहाँ मेरी अपेक्षा ( उपादान की अपेक्षा ) कथन किया हो उसे " ऐसा ही है" ऐसा श्रद्धान करना । ऐसा पात्र जीव को उपादान ज्ञान कराता है । प्रश्न ३३ – अज्ञानी कहते हैं कि ज्ञानी निमित्त को नहीं मानते, क्योंकि वह निमित्त से उपादान मे कुछ होना नहीं मानते हैं ? उत्तर— जैसे—अन्य मतावलम्बी कहते हैं कि जैनी ईश्वर को नही मानते है, क्योकि वह ईश्वर को उत्पन्न करने वाला, रक्षा करने वाला, पापियो को नष्ट करने वाला नही मानते है, उसी प्रकार वर्तमान मे दिगम्बरधर्मी नाम घराके कहते हैं, कि ज्ञानी निमित्त को नही मानते है । प्रश्न ३४ -- क्या वास्तव में ज्ञानी निमित्त को नहीं मानते हैं ? उत्तर - वास्तव मे ज्ञानी ही निमित्त को मानते हैं, क्योकि ज्ञानी कहते है कि निमित्त अपना कार्य सौ फीसदी अपने मे करता है । उपादान सौ फीसदी अपना कार्य अपने मे करता है ऐसा स्वतंत्र निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है । परन्तु खोटी दृष्टि से शास्त्र पढने वाले अज्ञानी कहते हैं कि निमित्त उपादान मे कुछ करे तो हम तुम्हारा निमित्त होना माने ।
SR No.010117
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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